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________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि कामारेड्डी से विहार कर बोलाराम पहुँच गये। बोलाराम संघ ने पुनः अपनी विनति दोहराई। तदनंतर श्रद्धेय मुनिवर का लाल बाजार में पदार्पण हुआ। लालबाजार से सिकन्दराबाद में पधारे। युवाचार्य श्री का भी सिकन्द्रबाद में प्रवेश हो गया। दिनांक ७-७-८८ को आन्ध्र की भूमि पर इन महान् सन्तों के पदार्पण पर सामहिक नगर स्वागत का कार्यक्रम अमीरपेट में रखा गया। यह सभी संघों की ओर से समायोजित था। अमीरपेट से रामकोट पदार्पण हुआ। यहीं पर बोलाराम श्री संघ को आगामी वर्षावास हेतु, स्वीकृति प्रदान की। युवाचार्य श्री को चातुर्मासार्थ सिकन्द्राबाद में प्रवेश करवाकर आप श्री ने बोलाराम हेतु चातुर्मासार्थ विहार किया। लालबाजार, अलवाल होते हुए बोलाराम नगर पधारे। जैन मुनियों का विशेष प्रभाव रहा है। जैन मुनि साधनाशील होते हैं, साथ ही साथ सेवा कार्य करने की प्रेरणा भी प्रदान करते हैं। यह सब जैन धर्म की करुणा एवं उदारता का द्योतक है।" श्रद्धेय श्री सुमनमुनि जी म. ने नागरिक अभिनन्दन के प्रत्युत्तर में कहा- "भगवान् के बताये हुए मार्ग का अनुसरण करके ही हम अपना जीवन मंगलमय बना सकते हैं एवं आत्मोथान कर सकते हैं।....हमारी मंजिल तो बैंगलोर थी किंतु श्री हस्तीमलजी मूणोत का प्रेमभरा आग्रह रहा तो इधर के क्षेत्रों में आ गए। बोलाराम चातुर्मास की कल्पना तक नहीं थी किंतु क्षेत्र स्पर्शना यहाँ की थी अतः आवागमन हो ही गया।" ....मंगलवचनों के साथ सभा विसर्जित हुई। चातुर्मास प्रवेश की खबरों को समाचार-पत्रों ने प्रमुखता के साथ प्रकाशित की। चातुर्मासकालीन कार्यक्रम सानंद सम्पन्न होने लगे। दिन-ब-दिन श्रावक-श्राविकाओं का उत्साह बढ़ने लगा। आबाल वृद्ध ज्ञान एवं क्रिया की सशिक्षा में आप्लावित होने लगे। इस चातुर्मास के प्रमुख कार्यक्रम इस प्रकार रहे दिनांक १२,१३,१४ अगस्त १६८८ को आचार्य प्रवर श्री आनंद ऋषि जी म. की ८६ वीं जन्म जयंति एवं दीक्षा अमृत-वर्ष पर त्रिदिवसीय महोत्सव के रूप में मनाया गया। यह महोत्सव तप-त्याग एवं नमस्कार मंत्र स्मरण के साथ सोत्साह मनाया गया। अनेक वक्ताओं ने आचार्य श्री के जीवन के विविध आयामों पर प्रकाश डाला। परम श्रद्धेय श्री सुमनमुनिजी म. ने आचार्य श्री आनंदऋषिजी म. के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा___ “आचार्यदेव श्री का जीवन निःस्पृह एवं सरल है, महाराष्ट्र के लोग उनको भगवान मानते हैं। वस्तुतः जहाँ मालता है वही परमात्मा का वास है। कमणा की प्रतिमर्ति हैं। स्नेह की अविच्छिन्न धारा हैं एवं ये संघ के महान बोलाराम वर्षावास बोलाराम श्री संघ मुनिवर के आगमन हेतु पलक पाँवड़े बिछाये हुए था ही। नगर के द्वार पर सैकड़ों श्रावक-श्राविकाओं ने मुनिवर श्री की अगुवानी की। शोभा यात्रा बोलाराम के राजमार्ग से होती हुई गुलाबचंद फतेहचंद स्मृति भवन में आकर एक विशाल सभा में परिवर्तित हो गई। बोलाराम नगर की ओर से । महाराज श्री का अभिनन्दन किया गया। पारस भाई जैन या। पारस भाई जैन ने इस अवसर पर मुनि श्री की स्वष्टवादिता, स्वतंत्र चिंतक, निर्भीक व्याख्याता आदि विशेषताओं पर प्रकाश डाला तथा चातुर्मास को सफल बनाने का श्रद्धालुओं से पुरजोर आग्रह किया। उक्त अवसर पर पधारे जिलाधीश श्री चल्लप्पा जी (आई.ए.एस.) ने कहा - "तमिल भाषा के साहित्य पर ७२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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