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________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि हुए एवं मध्यवर्ती क्षेत्रों को फरसते हुए श्री विजयमुनि श्री वस्तुतः उनके पद की निरभिमानता दर्शा रही है। तदनंतर म. ठाणा ३ का पदार्पण हुआ। तदनंतर मार्केटयार्ड में श्री ६-७ माहोपरांत आधिकारिक घोषणा हुई भी तो मुनि श्री जीवराजजी मेहता सादड़ी के गृहनिवास को पावन किया। जी को प्रसन्नता की अनुभूति भी नहीं हुई। वस्तुतः सन्त यहीं पर आचार्य श्री एवं उपाचार्य श्री द्वारा प्रवर्तक श्री पद के लिए नहीं जीता किंतु पद संत को पाकर सार्थक हो का एक परिपत्र प्राप्त हुआ जिसमें यह उल्लेख था कि जाता है। श्रमणसंघ से पृथक् संत को श्रमणसंघ में सम्मिलित किया ___ अहमदनगर में आचार्य श्री जी की दीक्षा-जयंति जाय या नहीं? एतदर्थ परामर्श मांगा गया था।.. मुनिश्री सम्पन्न हुई। साथ ही साथ मुमुक्षु आत्माओं ने आचार्य श्री ने पूर्व पृष्ठ भूमि का सांगोपांग वर्णन करते हुए उस पत्र के दीक्षापरक जीवन का अनुकरण करते हुए उनके का प्रत्युत्तर भेजा। संत थे - श्री राममुनि जी म. 'निर्भय'। पदचिह्नों पर चलने का दृढ़ संकल्प लेते हुए जैन श्रामणी यहीं आचार्य-प्रवर श्री आनंदऋषिजी म. की दीक्षा दीक्षा अंगीकार की। उपाचार्य श्री देवेन्द्रमुनिजी म. जयन्ति पर अहमदनगर पधारने का आग्रहभरा आमंत्रण अहमदनगर से विहार करके औरंगाबाद की दिशा में मिला। उपाचार्य श्री के एवं श्रमणसंघ सम्मेलन के अध्यक्ष प्रस्थित हो गए थे। विहार यात्रा में रत रहते हुए उनका वंकटलाल जी कोठारी, सुभाष जैन आदि के आमंत्रण को संदेश आया कि आप श्री औरंगाबाद पधारे। मैं आपकी पूज्य मुनिराज ने नहीं स्वीकारा। इसके पीछे कारण यह प्रतीक्षा में रहूंगा। रहा - “पूना श्रमण-सम्मेलन में उपाचार्य एवं युवाचार्य का आचार्य-दर्शन पद निर्णीत हो जाने के बाद यह सुनिश्चित किया गया था परम श्रद्धेय मुनिवर ने पूना से प्रस्थान किया और कि श्री सौभाग्यमुनिजी 'कुमुद' श्रमण संघ के महामंत्री घोड़नदी पधारे। घोड़नदी से विहार करके आप श्री होंगे। परम श्रद्धेय श्री सुमनमुनि जी म. एवं श्री कुन्दनऋषिजी अहमदनगर आचार्य प्रवर श्री आनंदऋषि जी म. के म. ये दोनों मंत्री पद पर प्रतिष्ठित रहेंगे किंतु उन्होंने चरणों में पहुंचे। ४-५ महिनों तक इन पदों की आधिकारिक कोई घोषणा नहीं की। घोषणा को यूं ही लम्बित बनाये रखा तथापि आचार्य श्री से श्रमणसंघ विषयक गहन चर्चाएं होती मुनि श्री सुमनकुमार जी म. को इसमें कोई आपत्ति नहीं थी। रही। एक बार आचार्य श्री ने मुनिश्री जी से अकस्मात् किंत इनसे आग्रह किया कि आचार्य श्री आनंदऋषिजी पूछ ही लिया कि मुनिवर ! आप श्रमण संघ की नीतियों म. की दीक्षा-जयन्ति पर अहमदनगर पधारो तो पद की से उदासीन क्यों है? तथा क्या नाराजगी थी कि विधिवत् घोषणा कर दी जाएगी। दीक्षा - जयंति पर आप नहीं पधारे । मुनि श्री तो ठहरे पद से निस्पृही एवं स्पष्टवादी तो मुनि श्री ने कहा – “आचार्यवर ! नाराजगी किसी उन्होंने स्पष्टतः कहलवा दिया कि मैं पद के लिए कदापि बात की भी नहीं है किन्तु मैं ठहरा थोड़ा सिद्धान्तवादी, अहमदनगर आने वाला नहीं। आप आचार्य श्री की दीक्षा अतः उक्त अवसर पर नहीं आ सका, कारण तो आपको जयंति सहर्ष मनायें किंतु मैं पद प्राप्ति का इतना इच्छुक ज्ञात ही है।" नहीं हूँ कि वहाँ आने पर ही आप मुझे पद प्रदान करें एवं आचार्यश्री ने कहा – “आपका कथन सही है, आधिकारिक घोषणा करें।.. मुनिश्री की यह निस्पृहता आधिकारिक घोषणा तो उसी समय हो जानी चाहिए थी ७० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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