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________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि श्री संघ है। श्रावक जन पूर्ण सजग थे। सभी पदाधिकारियों और सदस्यों ने मिलकर गुरुदेव से स्थानापति होने की प्रार्थना की। दैहिकदशा तथा श्री संघ की भावनाओं को देखते हुए गुरुदेव ने कहा- मैं द्रव्य क्षेत्र, काल और भाव की मर्यादा को रखते हुए डॉ. के परामर्शानुसार मैं विहार नहीं करूंगा । गुरुदेव के वचन सुनकर मालेरकोटला के सेवा समर्पित श्रावकों के हृत्कमल खिल उठे । परिणामतः १६७४ से १६८२ तक श्रद्धेय गुरुदेव पं. रत्न श्री महेन्द्र कुमार जी म. मालेरकोटला नगर में विराजित रहे । श्री संघ ने भरपूर सेवा का लाभ प्राप्त किया । चरितनायक की सेवाराधना "सेवा परम मेवा है” यह कहावत जगत में प्रचलित है । पर इस मेवा को खाने वाले जगत में बहुत थोड़े से लोग होते हैं । हमारे चरितनायक श्री सुमनमुनि जी म. ने गुरु सेवा रूप मेवा का आस्वादन जी भर कर ग्रहण किया । सतत गतिशील रहने वाले आपकी संयमी चरण सेवा का अवसर पाकर स्थिर हो गए। तन-मन-प्राण से आप गुरु सेवा में समर्पित बन गए। दिन, महीने, वर्ष अतीत के गर्भ में विलीन होने लगे । ऋतुएं क्रमशः बदलती रहीं पर आप स्थिर रहे अपनी आराधना में ..... सेवाराधना में । सिद्धान्त निष्ठा सामाजिक और धार्मिक गतिविधियां भी आप साथसाथ चलाते रहे थे । ७४-७५ में भगवान महावीर निर्वाण शताब्दी का शुभारंभ तथा समापन समारोह सकल जैन श्री संघ की ओर से हुआ। सकल पंजाब श्री संघ की ओर से समापन समारोह मालेरकोटला में एक क्लब में रखा गया । ५२ Jain Education International समापन समारोह में पधारने के लिए आप से प्रार्थना की गई । परन्तु इसके लिए आप श्री ने पहले ही अपने विचार प्रस्तुत कर दिए थे कि " क्लब इस आयोजन के लिए उचित स्थान नहीं है। त्याग और भोग की संस्कृति भिन्न है । स्थान का भी अपना महत्त्व होता है । " परन्तु निर्धारित कार्यक्रम में फेरबदल नहीं किया गया। फलतः श्रद्धेय चरितनायक समारोह में उपस्थित नहीं हुए। .... हम पहले भी लिख आए हैं कि श्रद्धेय गुरुदेव एक सिद्धान्त प्रिय व्यक्ति हैं । अपने सिद्धान्तों में समझोता उन्हें कदापि और कतई स्वीकार नहीं होता है । श्रद्धेय चरितनायक गुरुदेव ने सन् ७४-७५-७६-७७७८ के निरन्तर ५ वर्षावास अपने गुरुदेव की सन्निधि में मालेरकोटला नगर में किए। इस पूरी अवधि में तथा पूज्य गुरुदेव के स्वर्गारोहण तक गुरुपक्ष से आपके चाचागुरु जो दीक्षा में आपसे छोटे थे श्री संतोष मुनि जी म. "दिनकर" मालेरकोटला में ही गुरुदेव की सेवा में रहे थे । १५ मई १६७७ के दिन होशियारपुर में श्रद्धेय प्रवर्तक श्रमण श्री फूलचन्दजी म. के सान्निध्य में भगवान महावीर का केवलज्ञान महोत्सव मनाया गया था । इस प्रसंग पर श्रद्धेय चरितनायक को भी आमंत्रित किया गया था । फलतः श्रद्धेय मुनि श्री सुमनकुमार जी म. मालेरकोटला से होशियारपुर पधारे थे । आपके अतिरिक्त श्रद्धेय श्री ज्ञानमुनि जी म., विद्वद्रत्न श्री रत्नमुनिजी म., तपस्वी श्री लाभचन्द्र जी म. इस समारोह पर उपस्थित हुए थे I इस समारोह में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री मोरारजी भाई देसाई विशेष अतिथि थे । सन् १६७६ में विश्व केसरी श्री विमल मुनि जी म. ने मालेरकोटला में वर्षावास स्वीकार किया । उसी अवधि में धूरी का श्रीसंघ चातुर्मास की प्रार्थना लेकर गुरुदेव के पास मालेरकोटला पहुंचा। धर्मप्रभावना For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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