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________________ सर्वतोमुखी व्यक्तित्व नवदीक्षित मुनि श्री का प्रथम केशलुञ्चन भी यहीं भगत कर्मचंद की श्रद्धा : हुआ। धुंघराले बाल, एक-एक कर चिमटी में आते गये इनकी देव, गुरु, धर्म पर इतनी दृढ़ श्रद्धा थी कि एवं सिर-मुण्डन होता रहा। केशलुञ्चन वस्तुतः संयमी नवदीक्षित मनिकी अदाकोभी और अधिक निगणि जीवन की सहनशक्ति की पराकाष्ठा है। मुनिश्री इस में कर दिया। श्रद्धा से ही व्यक्ति भवपार होता है और खरे उतरे। श्रद्धा के मनोबल के आधार पर भी दरिया तिरा जाता तदनंतर गुरुदेव श्री अमृतसर पधारे अमृतसर जो है। घटना इस प्रकार घटित हुई। कि आचार्य श्री सोहनलालजी म. के ३२ वर्ष तक स्थिरवास सुलतानपुर के भगत कर्मचन्द यूं ही 'भगत' नहीं बन रहने के कारण धर्ममय नगर बन चुका था । वस्तुतः यहाँ गये थे। वे अरोड़ावंशी थे तथा साधु संगति के कारण भी धार्मिक एवं सामाजिक गतिविधियाँ चरमोत्कर्ष पर उन्होंने सप्तकुव्यसन का परित्याग कर दिया था तथा रही। नमस्कार मंत्र पर अपार आस्था रखते। यथावसर धर्मध्यान व प्रवचन-श्रवण भी किया करते। यहाँ पर व्याख्यान वाचस्पति श्री मदनलालजी म., पत्र भंडारी श्री बलवंतरायजी म. श्री मूलचंद जी म. आदि एकदा वे व्यापारिक कार्य हेतु बाहर-गये, उनका पधारे हुए थे। लगभग अर्द्ध माह तक अमृतसर धर्मनगरी साथी टट्ट था उनके संग और उस पर लदी थी कपड़े की की भाँति प्रतीत होने लगा। संत समागम, धर्म चर्चा, गांठ । घूम-घूम कर कपड़ा बेवना यही उनका काम था।.. सामाजिक चर्चा की त्रिवेणी बहती रही। मध्याह्न के बाद घटाएं घिर आई और मूसलाधार वर्षा होने लगी। अत्यधिक वर्षा देखकर वे पुनः सुलतानपुर अमृतसर पहुँचने से पूर्व ४ मील पर दुवुर्जी आये। आ रहे थे कि कालीबेही/नदी के पास आते-आते संध्या वहाँ लाला लालूशाह जी की कोठी में ठहरने का सुअवसर भी घिर आई। ऐसे ही घटाएँ घिरी हई और फिर सांझ मिला। उन्हीं की कोठी के प्रांगण में स्थित है - आचार्य का समय-अंधेरा द्विगुणित हो गया। काली बेही-नदी का श्री सोहनलालजी म.स. का स्मृति स्तम्भ । पानी भी भरपूर यौवन पर था। नदी के किनारे कितने ही अमृतसर से विहार करके 'तरण-तारण' होते हुए लोग सुलतान पुर जाने वालों में से खड़े थे किंतु नदी के पीपले गमतरी श्री पटीबाटा बोताना मा रौद्र रूप को देखकर उसे पार करने का साहस न कर सके एवं स्थानकवासी समाज की ओर से महावीर-जन्म-जयंति और एक-एक कर रात में निवास करने अन्य गाँव में चले का विशाल आयोजन हुआ। पट्टी से विहार करके सरहाली गये इस आशा के साथ कि कल प्रातः ही कालीबेही को होते हुए नौका विहार से सतलुज दरिया को पार कर पार कर उधर जाएंगे। किंतु भगत कर्मचन्द ने श्रद्धापूर्वक नमस्कार महामंत्र का स्मरण किया तथा कपड़े की गांठ सुलतानपुर लोधी पधारे। सुलतानपुर लोधी से 'टुरना' सिर पर रखी अंगोछे को अभिमंत्रित कर पानी में इस शाहकोट होते हुए वर्षावास हेतु पुनः सुलतानपुर पधारे । तरह फैलाया जैसे वही नाव बनकर इनको उस किनारे ले चातुर्मास सोत्साह सम्पन्न होने लगा। धर्म-रंग जमने लगा। जाने वाला है। टट्टू को 'फ्री' कर दिया वह भी स्वामी का प्रवचन-धारा बहने लगी। वर्षावास स्थल था - लाला अनुकरण करने लगा। दृढ़ विश्वास और आत्मबल के भगवानदास जैन खंडेलवाल का तबेला। सहारे ज्यों ही कालीबेही/नदी में कदम रखा त्यों ही कालीबेही २५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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