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________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि मुनिश्रेष्ठ शिष्य सम्पदा सहित मुलाना, मुलाना से शिष्य-घोषणा : खुड्डा, वहाँ से अम्बाला छावनी होते हुए अम्बाला शहर दो गुरुभ्राताओं का सम्मिलन हुआ। युवाचार्य श्री ने पधारे। अम्बाला में कतिपय दिवसों की स्थिरता के पश्चात् गिरधारी को मुनि श्री सुमनकुमार के रूप में देखकर बनूड़, खरड, कुराली, रोपड़ होते हुए बलाचोर पधारे। अत्यन्त हर्षानुभव किया। उसे अपने अंक से लगाया बलाचोर में तपस्वी श्री पन्नालालजी म. एवं उनके । और दुलार भरा आशीर्वादात्मक हाथ सिर पर रखते हुए शिष्य कविरत्न श्री चन्दनमुनि जी म. 'पंजाबी' ठाणा २ कहा - "वत्स! इस अवस्था में बड़े ही सुन्दर लग रहे हो, तथा व्याख्यान वाचस्पति श्री मदनलालजी म. के सुशिष्य । जिस मंगलमयी भावना/कामना/लक्ष्य के साथ संयम स्वीकार स्वामी बद्रीप्रसाद जी म. श्री रामप्रकाश जी म. पं.रल श्री । किया है उसी के अनुरूप अपने को ढ़ालना एवं जैन धर्म रामप्रसादजी म. आदि ठाणा वहाँ विराजमान थे। नवदीक्षित के प्रचार-प्रसार में अपना अमूल्य योगदान प्रदान करना ।" मुनि ने इनके दर्शनों का सुयोग प्राप्त हुआ। तदनन्तर युवाचार्य श्री ने कहा - "नवदीक्षित मुनि को मैं पं. श्री महेन्द्रकुमार जी म. का शिष्य घोषित करता हूँ।" मैं भी बन सकता विद्वान् : सभी मुनियों में प्रसन्नता की लहर छा गई। योग्य गुरु का निशाकाल में इन सभी संतों की विचारगोष्ठी एवं । योग्य शिष्य । नवदीक्षित मुनि ने भी श्रद्धाभरी दृष्टि से काव्य गोष्ठी होती थी। नवदीक्षित मुनि श्री सुमनकुमार जी । अपने गुरु को निहारा और भावभरा सश्रद्ध वन्दन मन ही का मानस इन काव्य-विचार गोष्ठियों को सुनकर अभिभूत ___ मन किया। हो जाता। गोष्ठियों के समागम का प्रभाव नवदीक्षित मुनि कई माहों के बाद मुनिराजों का सम्मिलन हुआ तो पर इस कदर पड़ा कि वे सोचने लगे-अगर मैं भी एकाग्रता कई विषयों पर विचार-विमर्श हुआ, प्रश्न-समाधान हुए, के साथ अध्ययन करूं तो मैं भी इन कविरलों/पण्डितरनों जिज्ञासाएं शान्त हुई-और कड़ी से कड़ी जुड़ी सौहार्दता की भाँति विद्वान् बन सकता हूँ। वस्तुतः जब व्यक्ति के एवं स्नेह की। संतों के पास आदान प्रदान के लिए और मन में चाह जागृत होती है तो वहीं से राह बननी प्रारंभ है ही क्या? यही तो है सब कुछ-ज्ञान बांटा, अनुभव हो सकती है। अन्तः स्फुरणा से ही ज्ञान ज्योति के दीवट । बांटा और बांटा स्नेह - और-प्रेम, सहृदयता और सदाशा। जगमगाते है और अपने आलोक से स्व को ही नहीं कसौटी में ख अपितु जन-जन को आलोकित करते हैं।...नवदीक्षित जालंधर से विहार करके कपूरथला पदार्पण हुआ, मुनि ने संकल्प किया मन ही मन कि वह अध्ययन और गुरुदेवों का। यहाँ जैन सभा भवन के ध्वस्त हो जाने के द्रुतगति से करेगा...। कारण 'राणी के मंदिर' में ठहरे और धर्मोपदेश दिया बलाचोर से विहार कर नवांशहर (दुआबा), बंगा, करते थे - सनातन धर्म सभा के सभागार में। कुछ दिन फगवाड़ा जालंधर छावनी, जालंधर शहर पधारे। जहाँ धर्म की अविरल गंगा बहाकर कपूरथला से रैयामण्डी युवाचार्य श्री जी म. बवासीर की चिकित्सार्थ दो माह से । जण्डियाला गुरु पधारे। यहाँ एक मास कल्प की स्थिरता निवसित थे तथा बंगा वर्षावास सम्पन्न कर वहीं पधार रही। धर्मध्यान का अपूर्व ठाठ रहा। सन्तों की सेवा गये थे। भक्ति में जैन ही नहीं अपितु अजैन भी अग्रणी रहे। खरे उतरे. २४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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