SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 245
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सर्वतोमुखी व्यक्तित्व “पर क्यों?" तदनन्तर गिरधारी के जीवन का समय पौष की गिरधारी ने जैन साहव को आद्योपान्त घटना कह। दुपहरी की भाँति ढलने लगा। गिरधारी दत्तचित होकर सुनाई। पूरा घटना वृत्त जानने के बाद जैन साहब ने लालाजी के यहाँ बच्चों को अध्यापन करवाया करता था। बच्चे भी उससे काफी घुलमिल गये थे। कालान्तर कहा में बच्चों की परीक्षाएँ समाप्त हो गई, तदनंतर गिरधारी “अच्छा गिरधारी, पहले यह बताओ तुम्हें क्या-क्या पुनः अकर्मण्य हो गया। गिरधारी अपने आप को असहाय कार्य करने आते हैं?" समझने लगा। "जैन साहब! मुझे हिन्दी पढ़ाने का कार्य भलीभाँति गिरधारी ने संतों के पास जाने का मानस बनाया, आता है, इसके अतिरिक्त में किसी भी कार्य में निपुण उनके बारे में पूछा तो विदित हुआ कि संतगण तो नहीं हूँ।" सुलतानपुर लोधी की धरा को पवित्र कर रहे हैं। कपूरथला “तुम हिन्दी पढ़ा दोगे मेरे बच्चों को; मुझे एक हिन्दी से सुलतानपुर लोधी १७ माईल था। गिरधारी इतनी अध्यापक की ही आवश्यकता थी, क्यों कि मेरे बच्चे लम्बी पद-यात्रा का आदि नहीं था। फिर भी चल पड़ा, हिन्दी में अभी कमजोर है।” यात्रा करते समय सर्वप्रथम गुरुद्वारा आया। गिरधारी जीवन सुख की पटरी पर ने गुरुद्वारे के बरामदे में विश्राम किया। हाथ पैर धोये और गुरुद्वारे में जाकर मत्था टेका और लंगर में जाकर __ गिरधारी ने हिन्दी के अध्यापक कार्य की स्वीकृति दे प्रसाद प्राप्त किया। दी। श्री शोरीलाल जी जैन गिरधारी को लेकर घर आये और गिरधारी अध्यापन के दायित्व बोध का निर्वहन दो दिवस यात्रा के पश्चात् गिरधारी अंततः सुलतानपुर करने लगा। आवास-निवास एवं भोजन-वस्त्रादि की व्यवस्था लोधी पहुँच ही गया। बड़ी कठिनाइयों के साथ गिरधारी जैन साहब ने कर ही दी थी। गिरधारी का जीवन पुनः ने यह यात्रा पूर्ण की थी, एक तो भाषा के ज्ञान का सुख की पटरी पर चलने लगा। अभाव तथा दूसरी ओर अनजानी राहें। खैर, पहुँचने के बाद ज्ञात हुआ कि सन्तगण तो शाहकोट की धरा पर प्रवचन-श्रवण एवं सत्संग जैन धर्म का बिगुल बजा रहे है एवं तिण्णाणं तारयाणं, श्री जैन साहब (लाल जी) गिरधारी को समय-समय पद को सार्थक कर रहे हैं। पर जैन सभा (स्थानक) भी ले जाते थे, कि सनातन धर्म गिरधारी सुलतानपुर लोधी में ही रहने लगा। यही सभा के सन्निकट था। उस समय वहाँ पंजाव श्रमण संघ उसकी विवशता थी। यत्र-तत्र भ्रमण करने के अतिरिक्त के तत्कालीन युवाचार्य श्री शुक्लचंदजी म.सा., तपस्वी उसके पास और कोई कार्य नहीं था। इसी शहर में धीरों श्री सुदर्शन मुनिजी पं.श्री महेन्द्रकुमारजी म. श्री हरीशचन्द्र (खत्रियों) के मोहल्ले के समीप ही बाबा स्वरूपनाथ का जी म.सा. के साथ धर्म जागरण करते हुए निवसित थे। डेरा/मठ था। गिरधारी ने घूमते हुए उस मठ में प्रवेश गिरधारी प्रवचन-श्रवण करता तथा पुनः लालाजी के साथ किया तो देखा कि उसके मध्यभाग में शिवजी का एक लौट आता। विशाल मंदिर है, तथा सुरम्य वातावरण भी। मठाधीश थे १७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy