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सर्वतोमुखी व्यक्तित्व
गिरधारी को लेकर दयालपुर होते हुए करतारपुर ले गये। साथ वाले एक पुलिसमैन ने कहा कि कपूरथला में करतारपुर में भी नाथ सन्यासियों का डेरा था। वहाँ दो सन्यासियों का डेरा है, सच ही बोल रहा है!....चलो, दिवस रहे। गिरधारी को कहाँ का वातावरण भी रास आगे चलो.... पुलिस दल आगे चल पड़ा, गिरधारी की नहीं आया। वहाँ से दयालपुर आये, डेरे में विश्राम । सांस लौट आई! वह अज्ञात आशंका से शंकित हो चला किया।
था....। दयालपुरा में गिरधारी का अमरनाथ-नेमनाथ से यकायक वह हताश-निराश, बोझिल कदमों से व्यास के पथ मनमुटाव हो गया। कारण था - आमिष खान-पान का। पर घूमने लगा। गिरधारी ने स्पष्टतः उन्हें चेतावनी देते हुए कहा - "देखिये,
पेट का गणित आप लोगों ने मुझे जबरदस्ती से आमिष भोजन और - सुरापान कराया तो मैं थाने में आप लोगों की शिकायत
गिरधारी के पैसे भी सन्यासी लेकर चलते बने! लिखवा दूंगा कि आप लोग मुझे बेवजह परेशान कर रहे
उसके पास बची थी मात्र एक छोटी अटैची, जिसमें है और राजस्थान से भगा ले आये है।"
गिरधारी के मात्र चार वस्त्र थे। दिन का मध्याह्न भाग
प्रारंभ हो गया। उसे कड़ाके की भूख लगी किंतु पैसों का सन्यासी अमरनाथ एवं मंगलनाथ नेमनाथ सहम गये।
अभाव! भूखा व्यक्ति क्या नहीं करता अपनी भूख मिटाने उन्होंने कहा “गिरधारी! अब तुम्हें परेशान नहीं करेंगे
के लिए।.... दुनिया के अधिकांश पाप इस पेट की भूख और आराम से रखेंगे।
को ही मिटाने के लिए किये जाते हैं? पेट का सवाल! यत्र-तत्र भ्रमण
भूख मिटाने का गणित!! ... अंततः गिरधारी ने असह्य
भूख लगने पर अपनी अटैची हलवाई को अल्प मूल्य में तदनंतर वे गिरधारी को व्यास लेकर आये। बस के
ही बेच दी और वहाँ भरपेट भोजन किया। हलवाई से माध्यम से। यहाँ राधास्वामी का विशाल एवं भव्य मठ
शेष पैसे की मांग गिरधारी ने की तो प्रत्युत्तर में उसने था। नेमनाथ-अमरनाथ गिरधारी को साथ-साथ लिए यत्र
कहा - उतने मूल्य का मैं तुम्हें भोजन करा चुका हूँ, तुम्हारे तत्र घूमे। एक स्थान पर खड़े रहते हुए उन दोनों ने
पैसे अब शेष नहीं है। गिरधारी ने कहा-मुझे यहाँ से गिरधारी को कहा - "तुम यहाँ बैठे रहना, हम अभी आते
कपूरथला जाना है तथा मेरे पास पैसे नहीं है, कुछ पैसे दे हैं।" - ऐसा कहकर वे चलते बने. और गये तो जनाब
दो।" अत्यधिक अनुरोध करने पर उसने अठन्नी मात्र ऐसे गये कि पुनः लौटे ही नहीं। गिरधारी प्रतीक्षा करता
गिरधारी के हाथ में थमा दी वह भी इस भाव के साथ रहा। असहाय सा इधर-उधर देखता रहा । कतिपय पुलिस
जैसे कि कोइ बहुत बड़ा उपकार का कार्य या कोई दान वालों को शक हुआ तो पूछ ही बैठे- “कौन है तूं, यहाँ
कर रहा है। कहाँ से आया और क्या कर रहा है? “उसने कहा" मैं नाथ सन्यासियों के साथ कपूरथला डेरे से आया हूँ।"
सद्व्यक्ति के संग "झूठ बोल रहा है या सच?"
___ अठन्नी ने गिरधारी को बस के माध्यम से कपूरथला
की भूमि पर पहुंचा दिया। गिरधारी जमनानाथ जी के मठ "सच!"
में आ पहुँचा। क्यों कि गिरधारी को उनके जीवन ने ही कुछ प्रभावित किया था। सन्यासी जमनानाथ जी वस्तुतः
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