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________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि नाथों के डेरे में आमिष आहार ग्रहण कर रहे हैं और सुरापान में व्यस्त है तो उसने वहाँ भोजन ग्रहण नहीं किया। अत्यधिक भूख प्रकृति के उन्मत्त यौवन के मध्य शैव मन्दिर स्थित थे लगने पर बाजार से खाद्य सामग्री लेकर अपनी भूख का वहाँ, कतिपय सन्यासियों की समाधियाँ भी अपने अतीत उपशमन किया। एकदा लाला गुरदत्तामल ने देखकर की कहानी अभिव्यक्त करती वहाँ मूक... सहज भाव से कहा कि गिरधारी ! तुम इनकी संगत क्यों कर रहे हो, स्थित कल-कल करती हुई थी! निकट ही पानी की बही/ कहीं और जाओ और अच्छा जीवन बनाओ। पंजाब में कहीं और जाओ और अच्छा जीवन नदी बह रही थी। उसके किनारे शालीमार बाग के बाहरी आते ही गिरधारी के लिए एक जटिल दुविधा उत्पन्न हो तरफ, ब्रह्मकुण्ड नामका स्थान था यह । भक्त जन पूजा- गई! वह दुविधा थी - पंजाबी भाषा को समझने की और अर्चना के लिए आते ही रहते थे। मारवाड़ी वेश-भूषा में बोलने की। गिरधारी पंजाबी भाषा से अनभिज्ञ था। अपरिचित गिरधारी को देखा तो उनके मन में संशय प्रथम बार ही तो प्रदेश से बाहर की यात्रा कर रहा था। उत्पन्न हुआ कि इस किशोर को कहीं से ये महात्मन् । उम्र भी १३ वर्ष मात्र थी। मंगलनाथ ने ही पंजाब यात्रा के लिए गिरधारी को प्रोत्साहित किया था कि तुम्हें पंजाब उठाकर तो नहीं ले आये है? संशय-विषय गर्माने लगा। में पढ़ायेंगे, विद्वान् बनायेंगे और अच्छे गुरु का शिष्य इस स्थान में मुद्रावाले महात्मा ही अधिकांशतः रहते । बना देंगे, तुम्हारा जीवन सुख-शांति और आनंद में व्यतीत थे। वहाँ के प्रमुख संन्यासी थे – अमरनाथ जी! होगा। किंतु गिरधारी को ये आश्वासन स्वप्नवत् और तदनंतर मंगलनाथ नेमनाथ गिरधारी को लेकर शालीमार मृगतृष्णा की भाँति छलावा देते हुए से प्रतीत होने लगे। वहाँ का वातावरण भी इन आश्वासनों का अट्टहास एवं बाग एवं ब्रह्मकुण्ड के मध्य में स्थित नाथों का डेरा था (जहाँ विगत रात्रि पहुँचे थे किंतु द्वार नहीं खुले थे) वहाँ उपहास करता-सा प्रतीत होने लगा। आये। यह मठ अत्यधिक विशाल था। पचहत्तर वर्षीय एक दिन गिरधारी ने सन्यासी मंगलनाथ से पूछ जमनानाथ जी इस मठ के अधिपति थे। लिया- “नाथ जी, धर्म स्थानों में यह आमिष आहार और सुरापान क्यों?" मंगलनाथ नेमनाथ से कुशलवृत्त ज्ञात कर पास ही नेमनाथ उत्तर दिया - “हमारे पंथ में यह सब मान्य बैठे गिरधारी के लिए पूछा, उन्होंने - कहाँ से लाए हो इसे है।” “धर्म तो अहिंसा में है, हिंसा में नहीं।" और यह कौन है? मंगलनाथ ने गिरधारी का परिचय दिया। नेमनाथ इसका कोई उत्तर न देकर और किसी सोच में खो गया। गिरधारी के मन में उमड़ रही विद्रोह की जमनानाथ जी अच्छे सन्यासी थे तथा स्वस्थ तन के भावना को वह स्पष्टतः जान रहा था। विद्रोह की आग धनी एवं परिश्रमी व्यक्ति थे।...कुछ समय के अन्तराल कभी भी सुलग सकती थी। फिर भी नेमनाथ सचेत था। नेमनाथ, गिरधारी पुनः अमरनाथ के डेरे पर आकर रहने । वह गिरधारी को कहीं अन्यत्र ले जाने की योजना बनाने लगे। में डूब गया। देखा गिरधारी ने ....पर वातावरण रास नहीं आया..... ब्रह्मकुण्ड में गिरधारी ने देखा कि साधु-सन्यासी एक दिन ब्रह्मकुण्ड कपूरथला से अमरनाथ नेमनाथ १२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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