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सर्वतोमुखी व्यक्तित्व
वर्षीय यति जी कुशल नाड़ी वैद्य हैं) थे। जो पांचुं में यदा यदा कदा श्री लक्ष्मीचंदजी यति भी गिरधारी के साथ कदा आते रहते थे। उनके गुरु थे- यति श्री बालचंद ___ परिभ्रमण कर आते। जी।श्री बुधमलजी जो कि यतिश्री केसरीचंदजी के शिष्य
तदनंतर गिरधारी को यति श्री लक्ष्मीचंदजी बीकानेर थे, उन्होंने यति - दीक्षा तो ग्रहण नहीं की थी किन्तु यति
ले आये। बीकानेर का “नाल" हवाई अड्डा, दादा श्री शिष्य थे और उपाश्रय में ही अपना जीवन व्यतीत किया
जिनकुशलसूरीश्वर जी का मेला जो कि दादावाड़ी में करते थे। गिरधारी की जीवन नैया के ये सज्जन लोग
आयोजित होता था, उदयरामसर में दादाश्री जिनदत्तसूरीप्रवर पतवार थे। तूफान में भटकी नैया के यो लोग ही खिवैया
जी की दादावाड़ी में भी कार्यक्रम आयोजित होते रहते थे, थे।
गिरधारी ने देखे। भ्रमण का मौका गिरधारी को इन्हीं प्रारंभ हई शिक्षा
प्रसंगों पर मिलता था। यदा-कदा कोई जागरण होता, तो गिरधारी की विधिवत् शिक्षा प्रारंभ हुई। नवकार । वहाँ भी जाना हो जाता था। मंत्र सीखा श्री बुधमलजी यति से। सामायिक के पाठ,
संस्कारों के अंकुर भक्तामर आदि सीखा था श्री रुकमांजी और श्री लक्ष्मीचंदजी से। गिरधारी की दैनिक चर्या में सुधार आने लगा - वह गिरधारी में धार्मिक संस्कारों के अंकुर पल्लवित, प्रभात में उठता, नमस्कार मंत्र गिनता, भक्तामर के श्लोक
पुष्पित होने लगे। बालक जैसा वातावरण पाता है उसी सस्वर उच्चरित करता था। दैनिक कार्यों के बाद नतन के अनुरूप अपने आपको ढ़ालने का प्रयास करता ही है। ज्ञानोपार्जन करता।
'देखत विद्या, खोदत पाणी' यह कहावत यूं ही नहीं गढ़ी गिरधारी वैद्य यति श्री लक्ष्मीचंदजी को भी औषधालय
हुई है। कोमल लता को जिघर झुकाओगे, झुक जाएगी,
वहीं समय पाकर अपना स्थान परिवर्तित नहीं कर पाएगी में सहयोग प्रदान करता। दवा लाकर देना, दवा घोंटना,
क्यों कि अब वह कठोर हो गई है।.. हाँ तो गिरधारी भी पूड़ियें बनाना एवं दवा की शीशियों , बोतलों, पैकेटों को सुव्यवस्थित रखने में सहयोग किया करता था।
यतिथी की क्रियाओं का अनुकरण करता।
अभी से....! यदा-कदा भ्रमण-जागरण उपाश्रय का मैदान ही उसके लिए क्रीड़ाङ्गण था।
यति का बाना (श्वेत वस्त्र धारण कर, छोटे-छोटे गिरधारी को पतंगबाजी एवं गेंद/दड़ी का खेल खेलने में
हाथों में झोली और झोली में पात्र लिए वह आहार हेतु रुचि थी। खेल खेलने देते थे गुरुवर्या एवं यति श्री
जाता, गिरधारी ऐसे लगता था मानो अभी से साध्वाचार गिरधारी को, तथापि अनुशासन में रखते थे उसे । गणगोर
की साधना में संलग्न हो गया हो लोग बहुत प्यार से का मेला, शिववाड़ी का मेला भी यथासमय लगता तो
आहारादि गिरधारी को बहराते। गिरधारी को लोक-मेला देखने के लिए जाने देते। ऐसे चातुर्मास काल के पर्युषण पर्व के अष्ट दिवसों में मेले मोरखाणा' ग्राम में भी आयोजित होते थे बच्चों का यतिश्री ने गिरधारी को कल्पसूत्र का हिन्दी अनुवाद का झड़ोला उतारने के लिए भी लोग यहाँ आया करते थे। पठन करवाया। गिरधारी की अधिकांश अध्ययन यात्रा
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