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साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि
(६) महार्या ज्ञाना जी -
दीपो जी (३) मूलां जी। आपकी दो अन्य शिष्याओं के आपको पंजाब में श्रमण परम्परा की जन्मदात्री और ।
नाम भी प्राप्त होते हैं - (१) आशादेवी जी म. एवं श्री संस्थापिका कहा जाए तो अत्युक्ति न होगी। आचार्य श्री ।
निहालदेवी जी म.। इनमें से हीरांजी जाति से माली थीं छजमल जी महाराज के पश्चात् पंजाब में कोई मुनि शेष
और १८८२ में दीक्षित हुई थीं। श्री दीपो जी जाति से नहीं रहा था। उस समय आपने रामलाल नामक युवक
क्षत्रिय थीं और १८८३ में दीक्षित हुई थीं। आर्या खूवांजी को दीक्षित करके श्री छजमल जी म. का शिष्य घोषित
की गुरु बहन जीवन देवी जी की दीक्षा वि.सं. १८६५ में किया और पंजाब में आज जो मुनिसंघ विद्यमान है वह सुनाम में हुई थीं और ये जाति से ओसवाल थीं। श्री रामलाल जी म. का ही है।
श्री खूबांजी का देहावसान वि.सं. १६३१ में टांडा ___ ज्ञानाजी की दीक्षा वि. सं. १८७० में हुई। आप नगर में (पंजाव) चातुर्मास में हुआ था। जाति से ओसवाल थीं। आप स्वभाव से शान्त, सरल
(८) साध्वी श्री मूलांजी और विनम्र थीं। संयम-तप की प्रतिमूर्ति थीं। आगम ज्ञान के साथ-साथ ज्योतिष और सामुद्रिक विद्याओं में भी
तपस्वी श्री छजमल जी म. आपके गृहस्थ पक्ष में निपुण थीं।
मौसा थे। आप जाति से कुम्हार थीं। वि.सं.१८६७ में
खूबा जी के पास दीक्षित हुई थीं। आपकी तीन शिष्याएं आप कई वर्षों तक सुनाम नगर में स्थिरवासी रहीं।
बनी (१) श्री वथो जी (१८६८) (२) श्री तावोजी देहावसान काल अभी तक अज्ञात है। इतना प्रमाणित है
(१६००) (३) श्री मेलो जी (१६०१)। कि १८६५ तक आप जीवित थीं। आपकी दो शिष्याएं थीं – श्री खूबांजी और श्री जीवनी देवी जी। सदाकंवर
आपका देहावसान पंजाव के रमीद्दी गांव में ३१ दिन जी नामक साध्वी आपकी समकालीन थीं। इन द्वारा
के संथारे सहित वि.सं. १६०३ में हुआ। आपकी गुरुणी लिपिकृत १८६८ का “नेमनाथ जी ब्याला" उपलब्ध
और शिष्याएं आपके देहावसान से २० दिन पूर्व ही होता है।
आपके पास पहुंच गई थीं। उसी दौरान उसी गांव की
एक महिला जयदेवी जी ने साध्वी ताबोजी से दीक्षा ली साध्वी श्री खूबांजी
आप जाति से राजपूत थीं। दिल्ली विवाहित हुईं (६) तपस्विनी श्री मेलोजी और वैधव्य के बाद वि.सं. १८८१ में दीक्षित हुईं।
आपकी परम्परा पंजाव श्रमणी वर्ग की वृहद एवं आपने अनेक वर्षों तक सुनाम में स्थिरवासी अपनी गुरूणी
सशक्त परम्परा है। इसका मूल कारण है - अन्य दो ज्ञानां जी की सेवा की थी। आपने कई प्रदेशों में विचरण
परम्पराओं का इस परम्परा में विलीनीकरण। इनमें से एक किया। पंजाव की विश्रुत नाम महार्या श्री पार्वती जी को
उत्तरप्रदेश की परम्परा की साध्वी श्री हीरादेवी जी शिष्या आपने ही अपनी अन्तेवासिनी बनाया था।
महार्या श्री पार्वती जी तथा दूसरी बेनती जी आर्या की आपकी तीन शिष्याएं थीं - (१) श्री हीरांजी (२) संतानिका साध्वी रल श्री चन्दा जी की है। (साथ ही
थी।
* विस्तृत विवरण श्री रामलाल जी म. के परिचय (आचार्य परम्परा) में देखिए।
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पंजाब श्रमणी परंपरा
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