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साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि
वेदना देह में उत्पन्न हो गई । २८ फरवरी भी ऐसे ही बीत गई।
२६ फरवरी का दिन । उस दिन आप विशेष प्रसन्न थे । श्रावकों और शिष्यवृन्द से आपने वार्ताएं कीं । दर्शक अनुमान नहीं लगा सकता था कि बीते दिनों में आप मारणान्तिक वेदनाएं झेलते रहे हैं। श्रावक वृन्द, मुनिवृन्द को सन्तुष्टि मिली कि प्रवर्तक श्री जी पूर्ण स्वस्थ हैं ।
सूर्यास्त होने में अभी डेढ़ घण्टा शेष था । आपके मानस में स्फूर्त प्रेरणा उत्पन्न हुई और स्वेच्छया चारों आहारों का प्रत्याख्यान कर लिया । चरम प्रत्याख्यान था यह आपका । प्रत्याख्यानोपरान्त प्रतिक्रमण भी आपने स्वयं पूर्ण विधि-विधान से किया। उस क्षण तक किसी के मन में यह कल्पना तक नहीं थी कि हमारे प्रवर्तक श्री जी की यही सान्ध्य वेला है। सूर्य अस्ताचल की ओर था ।
महाप्रयाण
सांय ठीक सात बज रहे थे । विद्वदवर्य श्री सुमनकुमार जी म. तपस्वी श्रीचन्दजी म. श्री संतोषमुनि जी म., श्री अमरेन्द्र मुनिजी म. आदि सभी मुनिजन प्रवर्तक श्री जी की चरण सन्निधि में बैठे थे । लाला केसरदास जैन भी वहीं उपस्थित थे। श्रद्धेय गुरुदेव प्रवर्तक श्री जी म. पर्यंकासन में बैठे हुए जाप कर रहे थे। मस्तक पर प्रदीप्त तेज था । उसी क्षण आपने डकार ली और आंखें मूंद लीं। दो पल के बाद दो ऊर्ध्ववायु खींच कर नेत्र खोल दिए। सभी को क्षमापना हित कर बद्ध किए । खुले नेत्रों
सब को देखते / निहारते समाधिपूर्वक पार्थिव देह का परित्याग कर हमेशा-हमेशा के लिए विदा हो गए। फिर कभी लौट कर नहीं आए। आते भी कैसे और क्यों...? क्योंकि यह उनका प्रयाण नहीं, अपितु महाप्रयाण था ।
श्रावकों ने आपकी पार्थिव देह को अन्तिम दर्शन के लिए नीचे हाल में रख दिया ।
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सभी श्री संघों को तार-टैलिफोन आदि से सूचनाएं भेजी गईं। आकाशवाणी और समाचार पत्रों द्वारा यह हृदय विदारक संदेश जन-जन तक प्रेषित किया गया कि उनके श्रद्धेय अब नहीं रहे हैं ।
हजारों - हजार लोग पंजाब, दिल्ली, यू.पी. राजस्थान, एवं कश्मीर से अपने आराध्य देव के अन्तिम दर्शनों के लिए जालन्धर आए ।
प्रमुख श्री संघ अपने साथ बैण्डादि लेकर आए
थे ।
था ।
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नब्बे दुशाले और २० मन चन्दन एकत्रित हुआ
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२ मार्च को लगभग २ बजे प्रवर्तक श्री जी की देह को बहुमंजिले विमान पर रखकर अन्तिम प्रस्थान हेतु... विदाई दी गई। शव विमान पर आकाश से वायुयान द्वारा अचित्त पुष्पों की वृष्टि की गई।
५ बजे गांधी पार्क में चन्दनचिता पर श्रद्धेय श्री की देह को अधिष्ठित कर जलते हृदयों से चिताग्नि दी गई ।
आंसूओं से भीगे आनन और श्रद्धेय - विरह में खण्डित हृदय लेकर श्रद्धालू अपने घरों को लौट गए। कवि के शब्द कितने सटीक हैं।
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वो गुल था, जिसके जलवे हजार थे। वो साज था, जिसके नगमें हजार थे । ।
(१) पूज्य गुरूदेव प्रवर्तक श्री शुक्लचन्द जी म. आजीवन शुक्ल साधना में लीन रहे थे । आपका तन और वस्त्र ही श्वेत न थे आपके जीवन का प्रत्येक क्षण शुक्ल था। सांस-सांस से आप शुक्ल थे। पूज्य प्रवर्तक मरूधर केसरी श्री जी म. ने आपके शुक्ल जीवन से प्रभावित होकर लिखा था
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प्रवर्त्तक पं.र. श्री शुक्लचन्द्रजी महाराज
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