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________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि सुयोग्य शिष्य पं. श्री महेन्द्र मुनि जी एवं विद्वद्रत्न श्री जालंधर में वर्षावास से पूर्व, वर्षावासावधि तथा सुमन मुनि जी म. को अपना प्रतिनिधि बनाकर सम्मेलन में उसके पश्चात् आप प्रायः अस्वस्थ ही रहे । वर्षावास से भेज दिया। पर आपका परमार्थ समर्पित मन इससे सन्तुष्ट पूर्व जालंधर छावनी में आप पर पक्षाघात का आक्रमण नहीं हुआ। पूज्य आचार्य श्री व उपाध्याय श्री का पत्र । भी हुआ। स्वस्थ्य निरन्तर गिरता गया। डाक्टरों ने पाकर आप अपने स्वास्थ्य की परवाह किए बिना और आपको पूर्ण विश्राम का परामर्श दिया। दवाएं दीं। डाक्टरों के परामर्श की अनदेखी करके प्रलम्ब विहार । लगभग एक माह तक आप रोगाक्रान्त रहे। पर उसके यात्रा पर प्रस्थित हो गए। बावजूद आप की संयम निष्ठा कितनी बेमिशाल थी उसका वर्णन आपके ही प्रशिष्य श्री सुमन मुनि जी म. के शब्दों ____ मुनि संघ व श्री संघ ने आपसे रुक जाने की प्रार्थना में निम्नोक्त है - की तो आपने कहा – “संघीय शान्ति व संगठन की सुरक्षा के लिए अजमेर सम्मेलन में उपस्थित रहना मेरा परम "....बात जालंधर छावनी की है। जून मास । कर्तव्य है। कर्तव्य की वेदी पर मैं शारीरिक सुख की। श्रद्धेय पितामह गुरुदेव अचानक ही रक्तचाप और पक्षाघात आहूति दे सकता हूँ किन्तु शारीरिक रक्षा के लिए कर्त्तव्य रोग से पीड़ित हो गए। साथ ही अतिसार और मूत्रकृच्छ की नहीं।" रक्त से भी। चिकित्सकों ने उन्हें पथ्य की दृष्टि से नीम्बू का रस और अन्य फलों का रस लेने को बाध्य किया। अजमेर मुनि सम्मेलन के पश्चात् आप श्री ने पूज्य फलतः संतों ने ही कहीं से रस की गवेषणा कर उन्हें पानी आचार्य भगवन् के साथ जयपुर में वर्षावास किया जो के साथ दिया गया। तीसरे दिन जब उन्हें चेतना आई ऐतिहासिक रहा। उसके बाद आप आचार्य श्री को लेकर और पुनः नीम्बू का रस दिया जाने लगा तो तत्काल दिल्ली पधारे। आचार्य श्री ने दिल्ली में तथा आपने उन्होंने पूछा - 'यह क्या है? कहाँ से आया है?' और कान्धला में वर्षावास किया। कान्धला से आप आचार्य ग्रहण करने से उन्होंने सर्वथा इन्कार कर दिया। श्री के स्वागत के लिए अम्बाला पहुंचे। अम्बाला में आचार्य श्री जी का भव्य स्वागत हुआ। एक बार जब उन्हें और वह भी प्रथम बार मौसम्मी का रस जो कि एक रुग्ण व्यक्ति के यहाँ से अल्प मात्रा अथक श्रम तथा प्रलम्ब विहार यात्राओं के कारण में लाया गया था दिया गया तो उन्होंने पीने से सर्वथा आपका स्वास्थ्य निरन्तर गिरता चला गया। अम्बाला में इन्कार कर दिया। गरूदेव का कथन था - "गहस्थों के आप कई बार रक्तचाप तथा हृदयरोग से अस्वस्थ हुए। घरों में प्रायः ऐसे रस तैयार नहीं मिलते हैं। वे मेरे निमित्त परन्तु आपका मन अस्वस्थ न था। रोग शान्त होते ही से ही यह सब तैयार करते हैं। मेरे निमित्त से तैयार कोई आप पुनः श्रमशील बन जाते थे। सन् १६६६ का वर्षावास भी पदार्थ मुझे अस्वीकार है।" आपने अम्बाला में ही किया। ___ यह था उनका अपने साध्वाचार के नियम, संयम के वर्षावासोपरान्त आप अपने शिष्य वृन्द के साथ प्रति दृढ़ विश्वास । उनकी यह धारणा थी कि “अपने डेराबसी, प्रभात, खरड़, कुराली, रोपड़, बलाचौर, नवांशहर, मूल नियमों का संरक्षण साधक के लिए अतीव अपेक्षित बंगा होते हुए होशियारपुर पधारे। वहाँ कुछ समय विराजने है।" यही दृढ़ता उनके जीवन को ऊपर उठाने में सहयोगी के बाद जालंधर के लिए विहार किया। सिद्ध हुई। प्रवर्तक पं.र. श्री शुक्लचन्द्रजी महाराज | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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