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________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि से कुम्हार थे। बड़ी दीक्षा के उपरान्त जब प्रथम बार आपको अपने माता-पिता से धार्मिक संस्कार विरासत उनके साथ आहारादि का प्रसंग आया तो आप श्री ने में प्राप्त हुए थे। उन्हीं संस्कारों से स्नात हृदय लेकर आप विनोद की भाषा में कहा - अरे! तू जाति से कुम्हार है, लुधियाना नगर में आए और व्यवसाय करने लगे। पर हम सब ओसवाल हैं, तूने हमारा जन्म तो भ्रष्ट नहीं कर व्यवसाय में आपका मन नहीं लगा। आपकी दकान दिया? यह सनकर नवदीक्षित मनि सहित सभी मनिराज धर्मचर्चा का केन्द्र बन गई। वहां पर आपके तीन युवक मुस्करा उठे। मित्र बने जिनके नाम थे - श्री रतन चन्द्रजी, श्री मोहनलाल जी एवं श्री खेताराम जी। आप चारों की मैत्री इतनी लगभग नौ मास पश्चात् मालेरकोटला में जब आप प्रगाढ़ बनी कि आप सभी ने मुनि दीक्षा लेने का भीष्म मृत्यु में प्रवेश की तैयारी-स्वरूप आत्म-अवलोकन और संकल्प कर लिया। परिणामतः आप चारों मित्र दिल्ली में आत्म-आलोचना कर रहे थे उस समय आपने भावविह्वल विराजित आचार्य श्री अमरसिंह जी म. के सान्निध्य में होते हुए मुनि श्री गैंडेराय जी को अपने निकट बुलाया पहुंचे और वि. सं. १६०८ आषाढ़ सुदि दसवीं को जिन और उन्हें उक्त वात स्मरण कराते हुए कहा-“मुने! मैं तेरे दीक्षा धारण कर ली। से खिमाऊ! मुझे विनोद में भी वे शब्द नहीं कहने चाहिए ___मुनि दीक्षा के बाद आपने अपना जीवन तप और थे। उससे तेरा हृदय दुखित हुआ होगा। जिन धर्म त्याग में अर्पित कर दिया। सेवा और स्वाध्याय आपके जातीय बन्धनों से मुक्त है, वहां तो कर्म प्रधान है।" ऐसा संयमीय जीवन के श्वास-प्रश्वास बन गए थे। श्रीसंघ कहकर आपने अपनी अंगुली उक्त मुनि के मुख में डालकर उन्नति के लिए आप सदैव यत्नशील रहते थे। आचार्य अपने ओठों से छू ली। देव श्री रामवक्ष जी म. के स्वर्गवास के पश्चात् श्री संघ ने आपके हृदय की कोमलता के दर्शन कर मुनि श्री आपको अपना नेता चुना। आपको वि. सं. १६३६ ज्येष्ठ गैंडेराय सहित समस्त मुनिवृन्द गद्गद् हो गया। ____ मास को आचार्य पद की प्रतीक चादर भेंट की गई। आप श्री के पांच शिष्य हुए - (१) श्री शिवदयाल आपके शासन काल में संघ का चहुंमुखी विकास जी म. (२) श्री बिशन चन्द म. (३) तपस्वी श्री नीलोपद हुआ। लगभग १६ वर्षों तक आप संघशास्ता के पद पर जी म. (४) श्री दलेल मल जी म. एवं (५) श्री धर्मचन्द रहे। वि.सं. १६५८, आसोजवदि द्वादशी के दिन लधियाना जी महाराज। नगर में आपने समाधि सहित देह का विसर्जन किया। (११) आचार्य श्री मोतीराम जी महाराज आपके पांच शिष्य थे - (१) स्वामी श्री गंगाराम जी म. (२) गणावच्छेदक श्री गणपतराय जी म. (३) श्री आचार्य श्री रामवक्ष जी महाराज के स्वर्गगमन के श्रीचन्द जी म. (४) तपस्वी श्री हीरालाल जी म. एवं (५) वाद आप पंजाव मुनिसंघ के आचार्य पाट पर मनोनीत तपस्वी श्री हर्षचन्द्र जी म. आपके स्वर्गगमन के पश्चात् मुनि श्री सोहनलाल जी __ आपका जन्म बहलोलपुर जिला लुधियाना में वि. सं. म. आचार्य बने। १८७८, आषाढ़ शुक्ला पंचमी को हुआ। लाला मुसद्दी लाल जी आपके पिता थे तथा श्रीमती जसवन्ती देवी (१२) युगप्रधान आचार्य श्री सोहनलाल जी म. आपकी माता थीं। आप जाति से कोहली क्षत्रिय थे। आपका जन्म वि. सं. १६०६, माघकृष्णा १ को हुए। | २६ पंजाब श्रमणसंघ की आचार्य परम्परा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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