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________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि १७२२ में अहमदाबाद में विरोधियों की प्रेरणा से किसी महिला ने आप को विषमोदक बहरा दिए जिनके भक्षण से आपका देहावसान हो गया। एक प्राचीन प्रमाण के आधार पर लवजी ऋषि के छह शिष्य थे, जिनके नाम क्रमशः इस प्रकार हैं- (१) सोमजी ऋषि (२) कानजी, (३) ताराचन्द जी (४) जोगराज जी, (५) बालोजी और (६) हरिदास जी। इनमें से प्रथम और अन्तिम शिष्य क्रम से पूज्य पाट पर विराजित हुए। सोमजी ऋषिः आपका जन्म कालूपुरा अहमदाबाद में हुआ। वि. सं. १७१० में आपने अहमदाबाद में ही लवजी ऋषि के चरणों में जिनदीक्षा अंगीकार की। दीक्षा के उपरान्त आप स्वाध्याय और साधना में रम गए। अपनी प्रवचन प्रभावना के लिए आप विशेष विख्यात हए। वि.सं. १७२२ में आप संघ के आचार्य बने। वि.सं. १७३७ में आपका स्वर्गवास हुआ। पंजाब के निवासी थे। पहले आपने यति-दीक्षा अंगीकार की थी। आप लाहौर की लोंकागच्छीय उत्तरार्द्ध शाखा की गद्दी के यति थे। वहीं पर रहते हुए आपने प्राकृत, संस्कृत, उर्दू, फारसी आदि भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया था। ज्ञानाराधना से आपमें संयम की रुचि विकसित हुई। परिणामस्वरूप सच्चे गुरु की खोज आपने प्रारंभ की। इसी संदर्भ में आप अहमदाबाद गए। वहां पर लवजी ऋषि और सोमजी ऋषि से भेंट हुई। इस प्रकार श्री हरिदास जी को सद्गुरु की प्राप्ति हुई। आपने श्री लवजी ऋषि का शिष्यत्व अंगीकार कर लिया। क्योंकि आप बहुभाषाविद् थे इसलिए गुर्वाज्ञा से आप धर्मप्रभावना के लिए अनेक प्रान्तों को स्पर्शते हुए पुनः पंजाब प्रान्त में पधारे। आपके पंजाब पदार्पण की यह घटना लगभग वि.सं. १७३० के आस-पास की है। आपने अपने जीवन का शेष भाग पंजाब में ही धर्म प्रभावना करते हुए व्यतीत किया। आप अपने समय के अत्यन्त प्रभावक मुनिराज थे। कई मुमुक्षु आपके शिष्य बने । सोमजी ऋषि के देवलोक . गमन के उपरान्त पंजाव श्री संघ ने एकमत से आपको उनका उत्तराधिकारी घोषित करते हुए अपना आद्य आचार्य मान लिया। इस प्रकार आप पंजाब परम्परा के आद्य आचार्य स्वीकृत हुए। (१) पूज्य श्री हरिदास जी म. आप श्री लवजी ऋषि जी म. के अन्तिम शिष्य और सोमजी ऋषि जी के गुरु भ्राता थे। * सोमजी ऋषि के वाद आप पूज्य पाट पर विराजित हुए। आप मूलतः ★ एक मान्यतानुसार आप सोमजी ऋषि के शिष्य माने गए। परन्तु एक प्राचीन प्रमाण से यह सहज सिद्ध होता है कि आप लवजी ऋषि जी के ही शिष्य थे। प्रमाण : प्रथम साध लवजी भए, दुति सोम गुरु भाय। जग तारण जग में प्रगट, ता सिष नाम सुणाय ।।१।। क्रिया-दया-संजम सरस, धन उत्तम अणगार। लवजी के सिष जाणिए, हरिदास अणगार ।।२।। लव जी सिष सोमजी, कानजी ताराचन्द । जोगराज बालो जी, हरिदास अमंद ११३।। उपरोक्त प्रमाण एक प्राचीन पंजाब पट्टावलि जो पयात्मक है से उद्धृत है जिसकी एक प्रति पूज्यवर्य श्री सुमन मुनिजी म. तथा एक प्रति पूज्य श्री सहजमुनि जी के पास है। पंजाब श्रमणसंघ की आचार्य परम्परा | |१८ Jain Education International Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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