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________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि श्रमण-धर्म में दीक्षित होते ही एकान्तर प्रारम्भ कर आज से २५५५ वर्ष पूर्व जिस विश्व कल्याणकारिणी आपने एक प्रहर में पांच सूत्र कण्ठाग्र कर लिये। पांचों सन्त परम्परा को प्रकट किया और जिस परम्परा में भगवान् तिथियों का विगय-त्याग कर दिया। ५२ वर्ष महावीर के प्रथम पट्टधर श्री सुधर्मा स्वामी से लेकर आज "अर्द्धशताब्दि" तक लेटकर निद्रा नहीं ली। वि. संवत् । तक जिन-शासन प्रभावक आचार्य हुए, जिस परम्परा में १८०५ में अक्षय तृतीया के शुभ प्रसंग पर जोधपुर में महान् धर्मोद्धारक धर्मवीर लोकाशाह, महान् क्रियोद्धारक आप आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किये गये। आप ४७ वर्षों एवं सन्त परम्परा की रक्षा हेतु अपने प्राणों तक की तक आचार्य पद पर रहे। आपके ५१ शिष्य थे। अनेक आहुति देने वाले पूज्य श्री धर्मदासजी, श्री धर्मसिंह जी, राजा-महाराजाओं को सदुपदेश देकर आपने उन्हें व्यसन श्री जीवराज जी, श्री हरजीऋषि, श्री लवजी ऋषि जैसे मुक्त किया। आपका विचरण-क्षेत्र अति विस्तीर्ण था। महान् सन्त हुए। बीकानेर, जालोर में यतियों की एवं पीपाड़सिटी में इस महती महनीया श्रमण परम्परा की अद्यावधि पोतियाबंधियों की परम्पराओं का आपने समूलोन्मूलन किया। पट्टावली यहां अविकल रूप से प्रस्तुत की जा रही हैजैन धर्म का चतुर्दिक प्रचार-प्रसार कर आपने नागौर केवलिकाल “वीर निर्वाण संवत् १ से ६४” में वि.सं. १८५३ की वैशाख शुक्ला चतुर्दशी को एक आचार्यनाम - आचार्यकाल - माह के संथारे के साथ स्वर्गारोहण किया। आपके पट्टधर आचार्य रायचंदजी महाराज हुए। तत्पश्चात् आचार्य श्री १. आर्य सुधर्मा वीर निर्वाण संवत् १ से २० आसकरणजी महाराज, आचार्य श्री सवलदासजी महाराज, २. आर्य जम्बू वीर निर्वाण संवत् २० से ६४ आचार्य श्री कानमलजी महाराज, आचार्य श्री जीतमलजी श्रुत केवली-काल “वीर निर्वाण संवत् ६४ से १७०" महाराज, आचार्य श्री लालचन्द्रजी महाराज ये सभी बड़े आचार्यनाम - आचार्यकाल - ही यशस्वी, विद्वान् पाटानुपाट आचार्य हुए वर्तमान में ३. आचार्य प्रभवस्वामी वीर निर्वाण संवत् ६४ से ७५ आचाय-कल्प श्रा शुभचन्द्रजा महाराज इस सम्प्रदाय क ४. आचार्य सय्यंभव वीर निर्वाण संवत् ७५ से ६८ आचार्यकल्प विशिष्ट पद पर सुशोभित हो रहे हैं। स्वामी (४) पूज्य श्री कशलोजी महाराज का समुदाय, जो ५. आचार्य यशोभद्र वीर निर्वाण संवत् ६८से १४८ पूज्य श्री रत्नचन्द्रजी महाराज की सम्प्रदाय के नाम से स्वामी विख्यात है। इस यशस्विनी महती महनीया रत्नवंश परम्परा ६. आचार्य संभूतविजय स्वामी वीर निर्वाण संवत् में इतिहास मार्तण्ड आचार्य श्री हस्तीमलजी महाराज अपर १४८ से १५६ नाम “गजेन्द्राचार्य” हुए। वर्तमान में इस परम्परा के ७. आचार्य भद्रबाहु स्वामी वीर निर्वाण संवत आचार्य श्री हीराचंद जी म. है। १५६ से १७० दशपूर्वधर काल “वीर निर्वाण संवत् १७० से ५८४" महती महनीया श्रमण परम्परा : आचार्यनाम - आचार्यकाल - चरम चौवीसवें तीर्थंकर श्रमण भगवान् महावीर द्वारा ६. आचार्य स्थूलभद्र वीर निर्वाण संवत् विक्रम सवत् के प्रादुर्भाव से ४६६ वर्ष पर्व तटनसार १७० से २१५ १४ श्री श्वे. स्थानकवासी श्रमण परंपरा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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