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________________ वंदन- अभिनंदन ! बधाई, वन्दन : पत्रों के माध्यम से श्री सुमनमुनि दीक्षा स्वर्ण जयन्ती अभिनन्दन समारोह का निमंत्रण पत्र मिला। अति प्रसन्नता हुई। सन्त-महात्मा समाज को धर्ममार्ग दिखाते हैं जो सदैव कल्याणकारी होता है। अतः उनका अभिनन्दन करके कोई भी समाज अपने पुनीत कर्तव्य का पालन करता है। आप सभी ऐसा ही कर रहे हैं। इसके लिए मेरी ओर से हार्दिक बधाई स्वीकार करें। डॉ. बी.एन. सिन्हा व्याख्याता, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, आई.टी.आई. रोड, करौंदी, वाराणसी-५ जा रही है। जिसके लिए सकल श्री संघ कोटिश-कोटिश बधाई के पात्र हैं। गुणीजनों का गुणगान होना ही चाहिए । यही हमारी संस्कृति है। न केवल संस्कृति ही है अपितु अपने कर्मों को क्षय करने के लिए एक बहुत बड़ी ढाल है। पुज्य गुरुवर, बौद्धिक विलक्षणता, अदम्य साहस, निश्चय में दृढ़ता, मधुर व निश्छल व्यवहार एवं प्रवचन शैली सरस, ओजस्वी, अनुपम आगम मर्यादित इत्यादि गुणों से सुसज्जित हैं। आपकी पावन वाणी में इतना जादुई आकर्षण है कि इसका अमृतपान करते ही मन अति प्रफुल्लित एवं आत्म-विभोर हो जाता है। आपके इस मंगलमय दीक्षा स्वर्ण जयन्ति की पुनीत वेला में आपके महिमा मंडित व्यक्तित्व का शत-शत अभिनन्दन ! सतीश जैन चान्सलर निटवीयर, . लुधियाना (पंजाब) अभिनंदन "दीक्षा-स्वर्ण-जयन्ति" कितना मनमोहक, सुन्दर, आकर्षक, चित्ताकर्षक शब्द है। जिसके पढ़ते ही हृदय वीणा के तार झंकृत/पुलकित हो उठे, मन की उपवन भूमि पर मानो आनन्द के अंकुर अंकुरित हो गए, प्रसन्नता के सितारे जगमगाने लग गए, चेहरे पर खुशी के पुष्प पुलकित होने लगे इत्यादि अनेकविध खुशियों के अद्भुत प्रभाव उत्पन्न होने लगे जव यह जानकारी प्राप्त हुई कि जैन सांस्कृतिक गगन के देदीप्यमान नक्षत्र, विनय-विवेक, विद्या की त्रिवेणी के सुस्नात पवित्र जीवन के धनी, प्रतिभा, स्मृति और अनुभूति तीनों के सुन्दर संगम के कर्णधार श्रमण संघीय सलाहकार मन्त्री, उप प्रवर्तक पुज्य गुरुदेव श्री सुमन मुनि जी महाराज की स्वर्ण दीक्षा जयन्ति २२-१०-६६ को श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन संघ माम्बलम चेन्नई के तत्वावधान में बड़ी धूम-धाम से मनाई 'सधर्म पुंडरीक'-श्रमण - संस्कृति का आदर्श-प्रतीक श्रमण-संघ के सलाहकार, मंत्री श्रमणवर्य श्री सुमन मुनि, श्रमण-संस्कृति के संदेशवाहक होने के साथ उन्होंने अपने पूज्य गुरुवर्यों के सान्निध्य में सुधर्म की शिक्षा-दीक्षासंयम साधना के महायात्री बनकर ५० वर्ष पर्यन्त श्रमणदीक्षा को निरतिचार पालन करके, अपने आपको सद्धर्मपुंडरीक अर्थात् श्वेत कमल-श्वेत-शुक्ल और कमल सुमन २१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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