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________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि संकट मोचक, महाप्रभावी, तुम पण्डित भारी। वर्षा जहाँ पर कम होती है, फसलें भी नहीं उग पाती।। शान्त सुधा रस दाता चाहूँ, सेवा नित-नित थारी।। दूर-दूर तक ग्राम बसे हैं, लम्बा-चौड़ा रेगिस्तान । मंगल मूरत, ज्ञानी-ध्यानी, जिनशासन-सिणगार। उस धरती पर सुमन खिले क्या, पर जिसके हो भाग्य महान् ।। भक्तजनां रा लाडला, महिमा रो नहीं पार।। कष्ट अनेकों आने पर भी, दृढ़ रख अपना आतम बल । महकाये फिर उस सौरभ से, महक रहा है विश्व सकल । । दीक्षा दिन पर खूब बधाई, जीओ साल हजार। धन्य-धन्य उन महापुरुषों को, जिनके कृत उपकारों को। “शान्तिलाल” श्रद्धा भाव सूं वन्दे बारम्बार ।। भूला सकेगा विश्व कभी नहिं, उनके उच्च विचारों को।। शांतिलाल खाबिया दुर्गादास से राज भक्त ने, मरुधरा की शान रखी। मैलापुर, चेन्नै-४ रामदेव हडबू-पाबू की, नहीं वीरता जाय लिखी।। अमरसिंह राठौड़ जिन्हीं की, शूर वीरता लखकर के। दिल्ली पति भी पहन चूड़ियाँ, झुका चरण में जाकर के।। सुमन - गौरव- गाथा कृष्ण भक्ति में मीरा हुइ थी, यहीं बावरी दीवानी। जहर हलाहल अमृत बन गया, नाग हार मय बन जानी।। उनचास वर्ष तक संयम पथ पर, चलकर दीप जलाये हैं। जैन जगत को भी इस भू ने, रत्न दिये थे दिव्य अनेक । हिमगिरि से सागर तक जो गुरू, जन-जन के मन भाये हैं।। अमरसिंह आचार्य प्रवर की, महिमा का क्या करूँ उल्लेख ।। उच्च कोटि के ज्ञानी है, कई भाषा के जानन हार। भूधर रघुपति जयमल मिश्री, चौथ हस्ती रावत मधुकर । इतिहास-केसरी, गिरा-दिवाकर, निडर प्रवक्ता, उच्च विचार ।। जिनके उपदेशों पर चलकर, मानव बन सकता ईश्वर ।। लेखक-अनुवादक-सम्पादक, की अद्भुत क्षमता को देख । मणि माला के मोती हैं सब, उसी माल में 'सुमन' गुरू । नत मस्तक हो जाते ज्ञानी, पढ़-पढ़ करके जिनके लेख।। जुड़े शौर्य से फौजें आकर, वो अब लिखना शुरू करूँ।। स्पष्ट गिरा सिद्धान्तवादिता, मिलन सारिता सरल मना। इसी मरू में छोटा कस्बा. पाँच एक सहाता है। सम्प्रदाय का भेद नहि जहाँ, जो भी आया भक्त बना ।। बीकानेर शहर से सीधा, मारग वहाँ पर जाता है।। जन-हित का रख ध्यान सदा जो, चहुँ दिश धर्म प्रचार करे। सीधा सादा वेष जहाँ का, लाज मर्यादा है गहना । जिसके प्रतिफल जगह-जगह, कई संस्थायें शुभ कार्य करे ।। एक-एक की मदद करे सब, प्रेम भाव का क्या कहना।। इन ही दिव्य गुणों को लखकर, पूना श्रमण सम्मेलन में। भीवराज जी जाट बसे वहाँ, मान-प्रतिष्ठा जन-जन में। 'शांतिरक्षक' पद दिया, पर अहंकार नहीं मन में।। न्याय नीति में भी थे नामी, क्षीर-नीर करते क्षण में।। ऐसे महान् गुणों के सागर, सुमन गुरू की यशगाथा । वीरादेवी नाम सुहाती, धर्मवान पद अनुगामी । गाने को उद्यत हुआ हूँ, गुरु चरणों में रख माथा ।। गायें भैंसे भेड़ बकरियाँ, अन-धन की थी नहीं खामी ।। भरत देश ही सब देशों का, धर्म गुरू कहा जाता है। ऐसे सुखमय जीवन में, फिर पुण्य योग से गोद भरी। राम-कृष्ण-महावीर-बुद्ध से महापुरुषों का दाता है।। ईसर पुत्र भया छाई खुशियाँ, पाल रहे मन मोद धरी।। जिसने अपने दिव्य शौर्य से, जन-जन का उद्धार किया। कुछ वर्षों के बाद और फिर वीरां के आधान हुआ। मिथ्या तम को दूर भगा कर, ज्योति का संचार किया।। सुकृत करती गर्भ प्रभावे, नौ महिनों से पुत्र वहाँ।। इसी धरा की पावन भूमि, 'मरुधरा' हैं कही जाती। | शभ महिना सध माघ पंचमी. वर्ष बराणं आया था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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