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शहडोल जिले की प्राचीन जैन कला और स्थापत्य ३८७
मन्दिर को जर्णोद्वार अजोली ग्राम के प्राचीन पुरावशेषों से किया गया। मन्दिर में एक गढ़ी के अवशेषों में जैन तीर्थंकरों एवं उनके शासन देवी-देवताओं को अनेक भव्य एवं कलात्मक मूर्तियाँ थीं। कालान्तर में इनमें से अधिकांश को निष्कासित कर तालाब पर डाल दिया गया ताकि उनका उपयोग (दुरुपयोग) कल्हाड़ी घिसने, कपड़ा धोने एवं लड़कों को पानी में कूदने के काम में हो सके और इन मूर्तियों के स्थान पर मन्दिर में अन्य देवताओं की मूर्तियाँ प्रस्थापित कर दी गयी है।
पंचमढ़ी मन्दिरों को अनेक पुरातत्वविद् जैन मन्दिर मानते हैं। मन्दिर से भगवान् आदिनाथ के साथ खड्गासन एवं पद्मासन चौबीसी बनी हुई है। इस मन्दिर में और भी कई स्थानों पर शासन देवियों के ऊपर तीर्थंकरों की मूर्तियाँ बनी हुई हैं । मन्दिर के पृष्ठ भाग में भगवान आदिनाथ और पाश्वनाथ की खड्गासन प्रतिमायें है । (४) राजाबाग संग्रहालय, सोहागपुर
सोहागपुर के कुंवर मृगेन्द्र सिंह का वर्तमान निवास "राजाबाग" कलचुरीकालीन स्थापत्य एवं मूर्तिकला : का एक समृद्ध संग्रहालय है । पुरातत्व की दृष्टि से एक शताब्दि पूर्व जो स्थिति सोहागपुर के महल (गढ़ी) की थी, वही स्थिति आज राजाबाग की है। प्राप्त जानकारी के अनुसार, राजाबाग में जैन कला की १३ मूर्तियाँ एवं अधिष्ठान है । इनमें तीर्थंकर की मूर्तियाँ, जैन शासन देवी-देवता एवं अधिष्ठान सम्मिलित है ।
इन मूर्तियों में प्रथम तीर्थकर भगवान आदिनाथ की मूर्ति उल्लेखनीय है । यह मूर्ति सफेद चलुआ पत्थर पर उत्कीर्ण की गयी है । यह ६८ सेमी० ऊँची है और ११-१२वीं सदी की है । अलंकृत पादपीठ पर प्रधान शासन देवो चन्द्रेश्वरी पद्मासन मुद्रा में है । वृषभचिन्ह सहित ऋषभदेव पद्मासन मुद्रा में ध्यानस्थ है । उनके धुंघराले केश उष्णोबद्ध है जो कन्धो पर लटक रहे है। हृदय पर श्रीवत्स का चिह्न है और गले में त्रिवलय है । पृष्ठभाग में अष्टदल कमल की आभायुक्त प्रभामण्डल है । मूर्ति के दाये-बांये पुष्पमाल लिये विद्याधर तथा चामरधारी इन्द्र है । मस्तक के ऊपर छत्र है। छत्र पर दुंदुभिक एवं शचि देवी बैठी है। मस्तक के दांये-बांये दो-दो तीर्थंकर प्रतिमाएँ पद्मासन मुद्रा में ध्यानरत है। यह मूर्ति सौम्य-मुद्रायुक्त, आकर्षक एवं वीतराग भाव सम्पन्न है। इस मूर्ति के समीप भ० शांतिनाथ का शिलापट्ट है . जिसमें भगवान् शांतिनाथ को कार्योत्सगं मुद्रा में दर्शाया है । इस पर हिरण चिह्न अंकित है । हृदय पर श्रीवत्स का चिह्न है । केश धुंघराले एवं उष्णीबद्ध है। मूर्ति आजानुबाहु एवं प्रभावोत्पादक है । इसके दांये-बांये यक्ष-यक्षिणो की अलंकृत अलंकृत प्रतिमाएं है। (५) राजकीय संग्रहालय धुबेला में शहडोल का पुरातत्व
राजकीय संग्रहालय धुबेला में जैन तीर्थंकरों एवं उनके शासन देवी देवताओं की ५० से अधिक प्रतिमाएं है । इनमें से कलचुरी कालीन प्रतिमाएँ मूलतः रीवा राज्य के विभिन्न स्थानों से संग्रहीत की गयी है । व्यक्तिगत निरीक्षण के अनुसार २२ प्रतिमायें शहडोल जिले से संग्रहीत की गयी प्रतीत होती है जो लाल बलुए पत्थर से निर्मित है । इनमें अधिकतर ऋषभनाथ, नेमीनाथ, पार्श्वनाथ तीर्थंकरों एवं गोमेध, अम्बिका, चक्रेश्वरी एवं ब्रह्मा यक्ष-यक्षियों की प्रतिमाएँ है जो पद्मासन एवं कार्योत्सर्ग मुद्रा में है । इन प्रतिमाओं में बाइसवें तीर्थंक र नेमीनाथ की मूर्ति उल्लेखनीय है जो शहडोल जिले की जैन कलचुरी कला का सफल प्रतिनिधित्व करती है। यह मूर्ति ११४ सेमी. ऊँची है जिसमें तीर्थकर नेमीनाथ को पद्मासन मुद्रा में एक उच्च पाद पोठ पर ध्यानस्थ बैठे हुये दर्शाया गया है। प्रतिमा के ऊपर तोन पक्तियों में ध्यान मुद्रा में इक्कीस तीर्थकर बैठे हुये हैं । छत्र के दोनों ओर दो हाथी पुष्प वृद्धि कर रहे है जिनके दोनों ओर एक-एक तीर्थकर कार्योत्सर्ग मुद्रा में अंकित है। प्रतिमा के अलंकृत पादपीठ पर नेमीनाथ का लांछन शेख अंकित है । पादपीठ के किनारों पर तीर्थकर के उपासक गोमेध एवं यक्षिणी अंविका की अलंकृत मूर्तियां प्रदर्शित है। यक्षी अंबिका की खड़ी मुद्रा में अलंकृत आकृति उल्लेखनीय है । समग्र रूप से यह मूर्ति प्रभावक, कलात्मक नैसर्गिक सौन्दर्य एवं सजीवता से ओत-प्रोत है।
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