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________________ [ खण्ड ३८६ पं० जगन्मोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ भुजाओं वाली एक देवी की मूर्ति थी। इसके मस्तक पर एक बैठी हुयी मूर्ति थी जो किसी जैन तीर्थंकर की थी। यह एकांकी टीला किसी जैस मन्दिर का खण्डहर रहा होगा । बैंगलर ने बावली के किनारे एज अर्द्धजैन स्तूप, खण्डित मूर्तियों सहित देखा । इसके अलावा अन्य अनेक जैन मूर्तियों के अवशेष बावली के किनारे विद्यमान थे । उस समय बैंगलर ने यहाँ २१ स्मारक देखे । एक स्मारक में जैन शिल्प कला से उत्कृष्ट नमूने लगे थे ओर कुछ जैन मूर्तियाँ बिखरी पड़ी थीं । व्यक्तिगत निरीक्षण नगर में नवनिर्मित तीर्थंकर महावीर संग्रहालय हेतु मूर्तियों के संग्रह के लिये लेखक द्वारा वर्षं १९७८ में सिंहपुर, मऊ (व्यौहारी), कनाड़ी, सोहागपुर, बिरसिंहपुर, चिटोला, विक्रमपुर, अमरकंटक आदि स्थानों का निरीक्षण किया गया । इन स्थानों में जैन कला को दृष्टि से सिंहपुर, कनाड़ी एवं मऊ का उल्लेख करना यथोचित होगा । (१) कनाड़ी को जैन गुफा कनाड़ी ग्राम शहडोल से लगभग ६० किमी० दूर शहडोल - रीवा मार्ग पर स्थित टेटका ग्राम से ८ किमी० दूर जंगल में स्थित है । यहाँ कुलहरिया नाले के किनारे बलुआ पत्थर को चट्टान काटकर गुफायें निर्मित की गयी थीं । चट्टान को काटकर एक एक आंगन बनाया गया जिसके तीन ओर गुफायें थीं। इनमें से एक गुफा विद्यमान है जिसकी छत टूट चुकी है। यह गुफा बालू से भरी हुई है । मुख्यद्वार के दोनों ओर दो जैन पद्मासन मूर्तियाँ उत्कीर्ण है । मूर्तियों के ऊपर नागफण विद्यमान है जिसके मुद्रानुसार ये मूर्तियाँ जेन तीर्थंकर भगवान् पार्श्वनाथ को हैं । यह गुफा जैन शैल गुहा का सुन्दर उदाहरण है । गुफा की सफाई को जाने पर अन्य पुरातत्त्वीय जानकारी मिलने की सम्भावना है । (२) मऊ ग्राम के १०-११ वीं सदी के भग्नावशेष यह ग्राम ब्योहारी कस्बे से ६ किमो० दूर बर्धरा नाले के किनारे शहडोल - रीवा मार्ग पर स्थित है | ग्राम से लगभग एक किमी दूरी पर १५-२० प्राचीन टोलें भग्नावस्था में विद्यमान हैं जो प्राचोन गाया को अपने अन्दर संजोये हैं । सोहागपुर के समान मऊ ग्राम भी १०-११ वीं शताब्दि में मन्दिर नगर कहलाता होगा । यहाँ पर जैन, वैष्णव एवं शैव मत की मूर्तियाँ प्राप्त होती रही है। सतना दि० जैन मन्दिर में भगवान् शान्तिनाथ की कार्योत्सर्ग मुद्रा में एक विशाल मूर्ति है जो मऊ ग्राम की अमूल्य धरोहर है । पहले ग्रामवासी उसे भीमबाबा की मूर्ति के नाम से पूजते थे । मऊ ग्राम की अन्य मनोहारी मूर्तियाँ ब्यौहारी के जैन मन्दिरों में स्थापित की गयीं । भग्न मन्दिरों के टोलों के समीप खेतों की सतह पर लाल मूर्तियाँ एवं मृद् खण्डों के अवशेष फैले हैं । उत्खनन एवं टीलों की सफाई में अनेक पुरावशेष मिलने की सम्भावना है । जनश्रुति के अनुसार साधुओं का बड़ा संघ यहाँ के पाषाणों में समाधिस्थ हो गया था । ग्रामवासियों ने कुछ मूर्तियाँ संग्रहित की हैं। इसमें एक तीर्थंकर फलक वाली तथा ६५ सेमी० के शीर्ष युक्त जैन मूर्ति है जो १०-११ वा सदी की है । प्राप्त सूचनानुसार मऊ के निकट ३०-४० वर्ष पूर्व सैकड़ों जैन अजैन मूर्तियाँ थीं जो धीरे-धीरे लुप्त होती गयीं । (३) सिंहपुर शहडोल से १५ किमी० दूरी पर दक्षिण दिशा में सिंहपुर ग्राम है । ईसा की १०वीं से १३वीं सदी में सिंहपुर एवं उसके निकटवर्ती ग्राम विभिन्न संस्कृतियों एवं कला के केन्द्र रहे । तालाब के किनारे एक भव्य मन्दिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में अभी भी विद्यमान है । यह मन्दिर पंचमढ़ी के नाम से प्रसिद्ध है । इस मन्दिर का प्रमुख द्वार अत्यन्त कलात्मक एवं मनोहारी है। उसके द्वार की धरणी (ऊपरी हिस्सा) में दरार आ जाने के कारण यह असुरक्षित हो गया है। इस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012026
Book TitleJaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherJaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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