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जैन शास्त्रों में मन्त्रवाद १९९
१. स्वरूप
सारणी १: मंत्र और स्तोत्र का तुलनात्मक विवरण मंत्र
स्तोत्र पद समूह, ध्वनि-समुदाय, २००० पद समूह, २००० अक्षरों से ज्यादा, पुष्प-परिकर के अक्षरों से कम, पराग कोश के समान, केन्द्रक (पूज्य) आधारित, ऐच्छिक पाठ विधि, समान, शब्द-आवृत्ति पर आधारित, मंत्राभ्यास का पूर्वरूप चतुरंगी साधना विधि, पूजा-स्तोत्र का उत्तर रूप विस्तृत, व्यापक
अल्प विस्तृत
विशाल लौकिक एवं आध्यात्मिक
पूजनीय देवता
लघु
२. क्षेत्र ३. वर्णन ४. विषय ५. साधन-प्रक्रिया ६. सामर्थ्य
७. शक्ति-स्रोत ८. अंग
९. उपमा
१०. उपयोगिता
जप
श्रव्य पाठ अधिक शक्तिशाली, सद्यः फलदाता कम शक्तिशाली, अलौकिक वर्णन से आत्म सम्मोहन,
भाव समाधि बारंबारता का जप
पाठ (विशाल होने से अधिक पाठ नहीं हो सकते ) (i) तीन : रूप, बीज, फल ( ii) चार : शब्द, अर्थ, उच्चारण, भावना अग्नि, कल्पवृक्ष, चिन्तामणि, कामधेनु, विद्युत-लहरी पापनाशक, विष-विघ्न-रोग मंत्रों के समान, पर परिसर सीमित नाशक, भूत-प्रेत बाधाहर, सिद्धि-रिद्धि प्रद (i) कंठगत ध्वनि से स्फोटशक्ति सेतत्र में ये सभी प्रभाव सीमित मात्रा में होते हैं। ( ii ) ध्वनि आघात द्वारा शक्ति
उत्तेजन ( iii ) मानस स्तर पर जप से शक्तिशाली कर्णातीत या पराश्रव्य तरंगों की उत्पत्ति ( iv ) स्थूल के माध्यम से सूक्ष्म को प्रभावित करना एवं सूक्ष्मतर अवस्था
की प्राप्ति (v) स्फोट शक्ति से अन्तर में विद्युत चंबकीय शक्ति का उद्भव
११. व्याख्या
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