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________________ प्रकाशकीय जैन धर्म के इतिहास में साध्वियों की परम्परा बहुत समृद्ध रही है किन्तु खेद का विषय है कि इस परम्परा का सुव्यवस्थित इतिहास उपलब्ध नहीं है। प्राचीन काल को छोड़ भी दें तो वर्तमान काल की साध्वी परम्परा का विवरण भी सुव्यवस्थित रूप से नहीं मिलता है। इसके परिणाम स्वरूप पूर्ण रूप से अथवा आंशिक रूप से भी इस विषय पर कुछ लिख पाना कठिन है। गुरुवर्य्या श्री महासती श्री कानकुवंर जी म. सा. एवं परम विदुषी महासती श्री चम्पाकुवंर जी म. सा. आचार्य प्रवरर श्री जयमलजी म. सा. की परम्परा की देदीप्यमान साध्वींरल थी। आपकी गुरुणी सद्गुरुवर्य्याश्री महासती श्री सरदार कुवंरजी म. सा. का विस्तृत जीवन परिचय भी नहीं मिल पाया है, कुछ अंश में ही उपलब्ध I अध्यात्म योगिनी महासती श्री कानकुंवरजी म. सा. एवं परम विदुषी महासती श्री चम्पाकुवंर जी म. सा. हमारी विनती को स्वीकार कर मद्रास पधारे, यह हम पर उनका उपकार था । वि. सं. २०४४ से वि. सं. २०४८ तक दोनों ही महासतियाँ जी ने स्वअर्जित ज्ञान को जन-जन में मुक्त हस्त से वितरित किया। इससे जैन धर्म की अच्छी प्रभावना हुई। हमारे दुर्भाग्य से अल्पकाल में ही महासतीद्वय महाप्रयाण कर गए। यह श्री संघ के लिए अपूरणीय क्षति हुई। महासती द्वय की स्मृति को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए एक स्मृति ग्रंथ के प्रकाशन का निर्णय लिया गया। इस ग्रंथ के लिए आचार्य श्री देवेन्द्र मुनिजी म. सा. श्रमण संघीय सलाहकार श्री रतनमुनि जी म. सा. उपप्रवर्तक मुनि श्री विनय कुमारजी म. सा 'भीम', श्री महेन्द्र मुनि जी म. सा. 'दिनकर' परम विदुषी महासती श्री उमरावकुवंर जी म. सा. 'अर्चना' महासती श्री बसंत कुवंर जी म. सा., विदुषी महासती श्री कंचनकुंवर जी म. सा. महासती श्री चेतन प्रभाजी म.सा. महासती श्री सुमन प्रभाजी म. सा. एवं महासती श्री अक्षय ज्योतिजी म. सा. का आशीर्वाद मार्गदर्शन, प्रेरणा एवं सहयोग प्राप्त हुआ। इसके लिये मैं सभी के प्रति आभार व्यक्त करता हूँ । " साध्वी श्री चन्द्रप्रभाजी म. सा. ने इस स्मृति ग्रंथ की प्रधान सम्पादिका का भार वहन कर ग्रंथ की समस्त सामग्री का सम्पादन संशोधन, परिवर्द्धन, परिवर्तन किया इसके लिये उनके प्रति विशेष रूप से आभारी हूँ। साथ ही सम्पादन सहयोगी डॉ. तेजसिंह गौड़ यदि कठिन परिश्रम करके देशभर के विद्वान मुनि भगवंतो, विदुषी महासतियां जी एवं लब्ध प्रतिष्ठित विद्वानों से सम्पर्क कर लेख प्राप्त नहीं करते तो यह ग्रंथ मूर्तरूप नहीं Jain Education International (५) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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