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________________ इस अंचल के प्रसिध्द संत स्वामी जी श्री रावतमल जी म. कई वर्षों तक कुचेरा में स्थिरवास विराजे । आप श्री विराजने से इस नगरी में धर्म भावना का और भी विकास हुआ व जन-मानस में धर्म के प्रति श्रद्धा भाव का अद्भुत अंकुरण हुआ, आज भी श्रध्दाशील श्रावकों के हृदय घट में विराजमान हैं। मुनि श्री रावतमल जी म.सा. इसी क्षेत्र के रड़ौद ग्राम के थे। वे रावत बाबा के नाम से प्रसिद्ध हुए। इन्हीं के शिष्यों श्री भैरव मुनि जी भी यहां वर्षों तक रहे। आपका देहावसान कुचेरा में ही वि.सं. २०२७ में गुरुश्री रावतमल जी म.सा. के श्री चरणों में हुआ । वि.सं. २०२९ में ज्येष्ठ शुक्ला सप्तमी को १३ वर्ष की लघुवय में श्री नूतन मुनिजी म.सा. की दीक्षा स्वामी श्री रावतमल जी म.सा. के श्री चरणों में कुचेरा में सम्पन्न हुई । वि.सं. २०३० में कुचेरा में ही स्वामी श्री रावतमलजी म.सा. का स्वर्गवास हुआ। आपकी स्मृति में कुचेरा निवासियों ने रावत स्मृति भवन बनवाया हैं । जयगच्छ परम्परा की एक शाखा के आचार्य प्रवर श्री जीतमल जी म. विख्यात संत रहे है। आपका जन्म कुचेरा के समीपवर्ती ग्राम लूणसरा में हुआ। आपके कई चातुर्मास कुचेरा में हुए । स्मरणीय है कि कुचेरा प्रारंभ से ही आचार्य श्री जयमलजी म.सा. की परम्परा का क्षेत्र रहा हैं। आज भी इस क्षेत्र पर युवाचार्य श्री मधुकर मुनि जी म.सा. व आचार्य श्री जीतमलजी म.सा. का ही वर्चस्व हैं। स्मरणीय हैं कि युवाचार्य श्री मिश्रीमल जी म.सा. 'मधुकर' के शिष्य श्री विनय मुनिजी म. भी कुचेरा के निकटवर्ती ग्राम गाजू के हैं। पू. श्री जवाहरलाल जी म.सा. के पास कुचेरा के ही श्री हनवंतचंद जी भण्डारी की भी दीक्षा कुचेरा में ही हुई श्री व बाबाजी श्री पूरणमल जी म.सा. के पास भी एक वैरागी की दीक्षा कुचेरा में हुई । इस प्रकार कुचेरा ने अनेक संत रत्नों को श्री जिन शासन की सेवामें अर्पित कर शासन की धवल कीर्ति को बढ़ाने में अपना अनुपम योगदान दिया । इसी प्रकार अनेक महासतियां जी म. का जन्म, दीक्षा व स्वर्गवास भी इस पुनीत स्थान पर हुआ । प्रस्तुत ग्रंथ की अभिवन्दनीया महासती श्री कान कुंवर जी म.सा. भी कुचेरा के ही थे । आपकी दीक्षा वि.सं. १९८९ में महासती श्री जमनाजी म. के श्री चरणों में हुई। आपने अपना सांसारिक मकान समाज को देकर संयम मार्ग स्वीकार किया, उत्तम संयम पथिका बनकर अनेक वर्षों तक मरुधरा के ग्राम-नगरों में विचरण करने के पश्चात, म.प्र. महाराष्ट्र, आंधप्रदेश आदि में विचरण करते हुए तामिलनाडु में पधारे और साहुकार सेठ, मद्रास में अस्वस्थता के कारण अंतिम समय तक रहे। आपके पास ही महासती श्री चम्पाकुंवर जी म.सा. की दीक्षा कुचेरा में ही वि. सं. २००५ में हुई। आपने ज्ञान ध्यान की अराधना करते हुए अपने संयम - जीवन को दीपाया । व्याख्यान प्रस्तुति की इनकी अपनी शैली थी । व्याख्यान की छटा उत्तम रहती थी। अनुशासन का अपना ढंग था । महासती श्री कानकुंवर जी म. के साथ ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए मद्रास में एकाएक स्वर्गवास हो गया । Jain Education International (२५४) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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