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________________ है। भगवान महावीर ने वासना जन्य विकार को नष्ट करने के लिये तप रूप महाऔषधि सेवन करने का विधान किया है। उव्वाहिज्जामाणे गामधम्मेहि अवि णिब्वलास अवे ओमोयरियं कुज्जा अवि उड्डुं ठाणं ठाइज्जा आवे गामाणुगामं दुइज्जिज्जा अवि आहारं वुच्छिदिज्जा अविचयइत्थिसुमणं आचारांग साधु इंद्रियों के विषयों से विकार ग्रस्त बन रहा हो तो उस विकार को नष्ट करने के लिये रूखा सूखा और सत्वरहित वस्तु का आहार करे या अहार कम करे अथवा कायोत्सर्ग करे, शीत ताप की आतापना ले, ग्रामानुग्राम विहार करे, यदि इससे विकार भी नहीं मिटे तो आहार का सर्वथा त्याग कर दे किंतु स्त्रियों की ओर मन को नहीं जान दे । तप की परिभाषाओं से तप का महत्व स्वतः ही प्रकट हो जाता है। तप्यते अवेण पावं कम्ममिति तपो जिस साधना से पाप कर्म तप्त हो जाता है वह तप है। तप्यते कर्माणि अनेन इतितपः Jain Education International . जिसके द्वारा कर्म तपाये जाय वही तप है। तवोणाम तावयति अट्टविंह कम्मगठिं नासे तिति वुतंभवई जो आठ प्रकार की कर्म ग्रंथी को तपाता है अर्थात आठो कर्मों को नष्ट करता है, भस्म सात करता है वह तप है। सोनाम अणसण तवों, जेण मणों मगुलं न चितेई जेण इंद्रियहाणी, जेण य जोगा न हायंति • तप एक दिव्य ज्योति है जो कि हृदय में प्रकाश ला देता है । तप वही है जिसके द्वारा तन मुर्झाए किन्तुमन हर्षाये निशीथचूर्णिभास्य For Private & Personal Use Only वही तप श्रेष्ठ है जिससे मन अमंगल न सोचे इंद्रियों को हानिन हो, नित्य प्रति के योग धर्म क्रियाओं में विघ्न न आये । तप से प्रसन्नता बनी रहे । तप जो भी किया जाए वह विशुद्ध भावों से मात्र कर्म निर्जरा के लिये ही करना चाहिये। इसके लिये किसी प्रकार की दूसरी भावना नहीं होनी चाहिये अन्यथा तप शस्त्र बन कर अपने आपके लिये घातक बन जाता है । चण्डकौशिक सर्प पहले एक तपस्वी संत ही था। बह्मदत्त चक्रवर्ती ने पूर्व भव में तप का दुरुपयोग किया और सातवीं नरक में गया। जितने भी वासुदेव होते है वे सब नरक में जाते है। इसका मूल कारण तप का दुरुपयोग हैं। तप रूपी महारसायन संयम और क्षमारूपी पथ्य सेवन से ही आत्मा को पुष्ट कर के अंनत सुख प्रदान करने वाली होती है। (२३९) www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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