SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 560
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन धर्म में तप का महत्व 38888888992658 • श्री चांदमल बाबेल N0000000000000000000893333000 3808080868800000000000000 धर्मः मंगल मुत्कृष्टं, अहिंसा संयम तपः। देवा अपि तं नमस्यन्ति, यस्य धर्मे सदामनः॥ श्रमण सुत्त। धर्म उत्कृष्ट मंगल है। अहिंसा संयम और तप उसके लक्षण है जो इस धर्म में लगा रहता है उसे देवता भी नमस्कार करते है। भगवान महावीर की वाणी को भी आचार्य शंयम्भव ने इन्हीं शब्दों में सूत्र दशवैकालिक में संकलित की है। अर्थात तप का उसी प्रकार महत्व है जितना अहिंसा एवं संयम का। “तवसा घुणइ पुराण पावगं" दशवैकालिक तपस्या द्वारा प्राचीन पाप नष्ट किये जाते है। यदि तप का आचरण नहीं हो और यथेच्छ खानपानादि एवं शब्दापि विषय चलते रहे तो संयम भी सरक्षित नहीं रह सकता। संयम के वृद्धि के लिये तप रूपी कवच प्रबल साधन है। यह तप आत्मशुद्धि का प्रबल साधन है। इसके द्वारा आत्मा प्रपंच पंक से बाहर होकर सर्वथा शुद्ध और निर्मल हो जाता है। __ आज विश्व में दो प्रकार के विचार धारा प्रचलित है। एक आध्यात्मिक और दूसरी भौतिक एक अंतर्मुखी और दूसरी बहुमुखी एक इहलौकिक तो दूसरी पारलौकिक, एक देहपोषक तो दूसरी आत्मपोषक . भौतिक विचार धाराओं की मान्यता eat drink & be marry खाओं पीओं और मौज करो। यावत् जिवेत् सुखम् जीवेत् ऋणम् कृत्वाघृतं पिवेत। भस्मी भूतस्य देहस्य, पुनरागमनं कुत: ("चार्वाक")। चार्वाक विचारधारा केवल इस भौतिक शरीर को सुरक्षा, आभिवृद्धि पर ही ध्यान देती है केवल इसी जन्म को स्वीकार करती है किंतु जैन दर्शन में तप को अधिक महत्व दिया है। संवर से मुख्यत: आश्रव की रोक होती है किंतु पुराने कर्मों की निर्जरा नहीं। आत्मा के साथ पूर्व में बंधे हुए कर्मों को तोड़कर अलग करने का उपाय तो मुख्यतः तप ही है। जहा महातलागस्स, संतिसूद्दे जलागमे। उस्सिंचणाए तवणाए, कमेणं सोसण भवे॥ एवं तु संजयस्सवि, पावकम्मनिरा सवे। भव कोडि संचिय कम्मं तवसा णिज्जारज्जई। • उतराध्ययन सूत्र (२३७) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy