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________________ बुद्धि का वैभव डॉ. आदित्य प्रचण्डिया 'दीति' कागज पर एक तरफ संसार का चित्र था और दूसरी तरफ मनुष्य का । पिता ने फाड़कर उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिए। फिर अपने छोटे पुत्र से उसे जोड़ने के लिए कहा। बच्चे ने संसार का चित्र जोड़ने का काफी यत्न किया, किंतु जुड़ नहीं सका। तब दूसरी तरफ मनुष्य का चित्र देखा। ज्यों ही उसे जोड़ा, संसार भी जुड़ गया। वास्तव में संसार मनुष्य के पीछे ही है। संसार के समस्त प्राणियों में मनुष्य सबसे अधिक बुद्धिमान माना गया है। है भी वह समस्त प्राणियों में श्रेष्ठ । हाथी डीलडौल में बड़ा है। एक हाथी दस मनुष्यों को पछाड़ सकता है। लेकिन मनुष्य उस पर भी सवारी करता है। उसे वह अपने काबू में कर लेता है । केहरि बड़ा शक्तिशाली है, परंतु है वह शरीर से ही ताकतवर, बुद्धि में ताकतवर नहीं । इसी कारण मनुष्य उसे पिंजरे में बंद कर देता है। मनुष्य में यह विलक्षण शक्ति उसकी बुद्धि की बदौलत ही है। अपनी इसी बुद्धि के कारण वह सबके सिर पर चढ़ बैठता है । कहते हैं जिसके पास बुद्धि हैं, उसी के पास बल है। निर्बुद्धि में बल ही कहाँ ? बुद्धि के बल पर ही मनुष्य ने विविध कलाओं और शिल्पों की शोध-खोज की। बुद्धि के बल पर ही उसने समाज व्यवस्थाएँ बनाई, सभ्यता से रहना सीखा, शिष्टाचार और धर्म की मर्यादाएँ बांधी, सुख से जीवन यापन करने के उपाय सोचे। यहाँ तक कि बुद्धि की बदौलत ही मनुष्य ने अपने जीवन का सर्वांगीण विकास करने की तरकीबें ढूँढी और आध्यात्मिक विकास में सर्वोच्च प्रगति करके मनुष्य ही नहीं, पशुपक्षी ही नहीं समस्त प्राणियों के साथ आत्मीयता और कौटुम्बिकता का संबंध बाँधा । मनुज जीवन के अंतिम ध्येय परमपद अर्थात मोक्ष प्राप्त करने का उपाय बुद्धि बल द्वारा ही तो मनुष्य ने खोजा है। एक से बढ़कर एक वैज्ञानिक आविष्कार मनुष्य की बुद्धि की ही उपज है। मनुष्य की बुद्धि ने जल, स्थल, और नम पर अपना आधिपत्य जमाकर सारे संसार को चकित कर दिया है। मनुष्य की बुद्धि ने समुद्र की छाती चीर कर पृथ्वी का पेट फाडकर और आकाश के चंद्रमा सूर्य और तारों की दूरी नापकर समस्त रहस्य खोलकर रख दिए हैं। हवाई जहाज, रेडियो, टेलीफून, टेली- विजन, टेलीप्रिंटर, मीटर, रेल आदि सब मनुष्य की बुद्धि के ही चमत्कार हैं। अणु-परमाणुओं की शोध भी मानव बुद्धि ने की है। जिसके द्वारा बोध हो, उसे बुद्धि कहते है। ज्ञान तो अध्ययन द्वारा प्राप्त किया जा सकता है किंतु बुद्धि महान अनुभवों के बीच उत्पन्न होती है। बुद्धि तो अज्ञान को नाश करने वाली है। प्रज्ञा कुशल बुद्धिवालों का अमोध शस्त्र है। शास्त्रों का बोध बुद्धि से होता है, अबुद्धि से नहीं । दीपक सामने होने पर भी चक्षुहीन व्यक्ति देख नहीं सकता। बल की अपेक्षा बुद्धि बड़ी हैं। उसके अभाव में ही बलवान हाथी मनुष्य की सवारी बन रहा है। • गुजराती कहावत है- 'अकल बिना नो आंध लो, पैसा बिना ना पांग लो' । जिसके पास बुद्धि है उसी के पास बल है। निबुद्धि के पास बल कहाँ ? चार प्रकार की बुद्धि कही गई हैं। (१) घट-जल के समान परिमित अर्थ को धारण करने वाली, (२) कूप जल के समान नए नए अर्थ को ग्रहण करने वाली (३) तालाब के पानीवत् बहुत अर्थ का लेन देन करने वाली (४) समुद्र जल के तुल्य (२२९) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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