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________________ स्याद्वाद का व्युत्पत्ति एवं अर्थ - विणय-णिसेहणसीलो, णिपादणादो य जो हु खलु सिद्धो। सो सियसद्दो भणिओ, जो सावेक्खं पसाहेदि॥ सम.७१५ __ अर्थात् जो सदा नियम का निषेध करता है, निपात रूप से सिद्ध है, वह स्यात् शब्द है, जो सापेक्ष को सिद्ध करता है। स्यात् शब्द का प्रयोग निपात रूप में प्रयोग होने के कारण स्यात्+वाद का अर्थ शायद या सम्भव न होकर निश्चित अपेक्षा का द्योतक है। ___ अवरोप्पर-सावेखं अह पमाण-विसमं वा। (जैनेन्द्र नि. ४९८) प्रमाण व नय के विषय परस्पर एक दूसरे की अपेक्षा करते हैं अथवा एक नय का विषय दूसरे नय की अपेक्षा करता है यही सापेक्ष दृष्टि है अन्य नहीं। क्योंकि नय वस्तु के एक धर्म की विवक्षा/अपेक्षा से लोक व्यवहार साधना है अर्थात् किसी एक धर्म ही उसका विषय होता है, इसलिए उस समय उसी धर्म की विवक्षा/अपेक्षा रहती है। जिस समय लाल टोपी वाले को लाओ ऐसा व्यवहार किया जाता है, उस समय लाल टोपी की विवक्षा रहेगी। सापेक्ष से नियम से समस्त व्यवहारों की सिद्धि होती है -सयल-ववहार सिद्धी सुणयादो होदिणियमेण।" स्याद्वाद में स्यात् अस्ति घटः, स्याद् नास्ति घटः का प्रतिपादन है। इसलिए स्यादवाद निश्चित अपेक्षा का कथन करने वाला सिद्धान्त है? १. सापेक्ष स्याद्वाद है, निरपेक्ष नहीं। २. विवक्षा की प्रयोग विधि-विधि एवं निषेध रूप है। ३. अपेक्षा-अनेक धर्मों से युक्त है। ४. स्याद्वाद की विवक्षा-मुख्य और गौण रूप है। ५. स्याद्वाद का कथेचित ऐसा भी है यह कथन सापेक्ष का प्रतिपादन करने वाला है। स्यादवाद् की सप्तभंगी व्यवस्था - नय या प्रमाण दोनों का विषय परस्पर में सापेक्ष विषय को ही आधार बनाता है। भंग/वचन व्यवहार सप्त रूप में होने से सप्त भंगी सापेक्षता के प्रतिपादन में सहायक सत्तेव हुंति भंगा, पणाम-णय-दुणय भेदजुत्ता वि। सिय सावेक्खं पमाणं, पाएण णय दुणय णिरवेक्खा॥ (सम. ७१६) प्रमाण, नय और दुर्नय के भेद से युक्त सात भंग है। स्यात् आपेक्ष नय प्रमाण है। इसके सात भेद सप्तभंगी हैं। अस्थि ति णस्थि दो वि य अव्वत्तव्वं सिएण संजुतं। अव्वत्ता ने तह, पमाणभंगी सु-णायव्वा॥ (सम ७१७) १. स्यात् अस्ति, २. स्यात् नास्ति, ३. स्यात् अस्ति नास्ति, ४. स्यात् भवक्तव्य, ५. स्यात् अस्ति अवक्तव्य, ६. स्यात् नास्ति अवक्तव्य, ७. स्वात् अस्ति नास्ति अवक्तव्य। (१८६) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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