SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 477
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 8888888880 यंत्र रचना प्रक्रिया और प्रभाव • श्रमण संघीय सलाहकार श्री रतन मुनि जी म.सा. के सुशिष्य मुनि श्री सतीशचन्द्र 'सत्य' भगवान ने फरमाया है, पहले जानो पश्चात् करो ‘पढमं नाणं' जिसे हम अच्छी तरह से जानते नहीं, उसे ठीक से नहीं कर सकते और उससे मनवांछित फल भी प्राप्त नहीं होता। कोई भी क्रिया कार्य किसलिये करना, उससे क्या लाभ होगा, इस बात को जानने के पश्चात् ही आराधना, साधना अच्छी तरह हो सकती है। उसका आशातीत लाभ भी मिल सकता है। साधना करते समय साधक को पूर्ण निष्ठा श्रद्धा से साधना में संलग्न हो जाना चाहिये। मानसिक तैयारी यदि डाँवा डोल हो तो साधना में सफलता असंभव होगी। जैसे कोई अंचिन्त्य लाभ सामने दिख रहा हो, उसे प्राप्त करने में जैसी व्यक्ति को आकुलता हो तो वह लाभ प्राप्त होने पर उसकी खुशी की सीमा नहीं रहती ठीक उसी तरह साधना क्षेत्र में साधक को पूर्ण समर्पित होना नितान्त आवश्यक है। साधक को सर्वप्रथम दृढ़ संकल्पी होकर योग्य गुरु से मंत्र प्राप्त कर यंत्र बनाने की विधि जानना चाहिये। गुरु कृपा से मंत्र प्राप्त कर उसे कण्ठस्थ करे, बताये अनुसार साधना जाप करें, उसके अर्थ पर चिंतन करें। संकल्पित जाप पूर्ण होने पर यंत्र निर्माण किया जाता है। साधना के लिये अनुकूल स्थान, आसन, माला, काष्ठ का पट्टा, ऊपर बिछाने हेतु लाल या सफेद वस्त्र आदि यंत्र लेखन की सामग्री अष्ट गंध, वोरू या सुवर्ण की कलम, गुलाब जल आदि आराधना (साधना) करते समय प्रातः उठते ही ५, ७ या ११ बार नमस्कार स्मरण करना। उसके बाद हृदय में “ह्रीं” का ध्यान “ऊँ ह्रीं अहँ नमः” का ३ बार उच्चारण करना “गुरुगम” साधना काल में साधक को दोनों समय प्रतिक्रमण, आदि क्रिया करते हुये सदाचार मय जीवन व्यतीत करना चाहिये। मानसिक, वाचिक, कायिक शुद्धि का ध्यान रखना। पश्चात् झि पऊँ स्वाहा। ३ बार सीधा, ३ बार उल्टा का जाप करना। इस क्रिया से शरीर में स्फूर्ति, नयी चेतना का संचार होगा। उसके बाद प्राणायाम करना, ३ या ५ बार रेचक कुथक, पूरक “पूरक करते समय चिंतन करना कि मेरे शरीर में से विचारों की अशुद्धि बाहर निकल रही है, इस क्रिया से मन स्वस्थ बनेगा। पश्चात् न्यास क्रिया करना “आत्म रक्षा स्तोत्र से"(वज्रपंजर स्तोत्र बोलना)। (१५४) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy