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- उपसंहार - अंत में निवेदन करना चाहुँगा कि हम आकृति से तो मानव बन गए। पुण्योदय से अनुकूल साधन सामग्री भी पर्याप्त मिली है। किन्तु प्रकृति से मानव बने या नहीं? यदि मानवता न आई तो फिर पशु में वह हमारे में क्या अंतर रहा? गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। मनुष्यता का कुल गुण व आधार समता है। यदि समता जीवन में आ गई तो समझो जीवन सार्थक हो गया, धन्य हो गया। सभता योग्य शब्द को उलटा कर पढ़े तो तामस गयो होता है? जिसका अर्थ है -क्रोध, विषमता में गयो समता प्राप्त करने के लिए तामस को छोड़ना ही होगा। इस हेतु हमें स्वशासित हो समता के पोलक सद् गुण शान्ति संतोष, सहिष्णुता, क्षमा आदि को अपनाना ही होगा। हमारा धर्म और कर्म आचार और विचार सभी समता योग साधनासे समता रूप हो, इस भावना का प्रेरक एक पद कह कर विषय पूर्ण करता हूँ -
धर्म है समता हमारा कर्म समता मय हमारा। साम्य योगी बन हृदय से स्रोत समता का बहावे।
भावभीनी वंदना, महावीर चरणों में चढ़ावें। शुद्ध ज्योर्तिमय निरामय, राय अपने आप पावें॥
• डागा सदन, संघपुरा, टोंक (राज.)
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ज्ञानी पुरूष अपने मन को तथा अपनी इन्द्रियों को अपने नियंत्रण में रखते हैं। अपने मन, वचन तथा काय के अहिष्ट व्यापारों को रोककर अपनी आत्मा को उज्जवल बनाते हैं। वे अपने सत्संकल्प तथा अपने लक्ष्य से कदापि विचलित नहीं होते। किसी भी प्रकार का उपसर्ग और परीषट क्यों न आए, वे अपने विचारों का तथा पथ का परित्याग नहीं करते। उनका सम्यग्ज्ञान ही उनके उत्थान का कारण बनता हैं। इसी कारण संसार के सभी शास्त्र ज्ञान की महिमा का वर्णन करते हैं।
• युवाचार्य श्री मधुकर मुनि
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