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________________ संयोग को प्राप्त होने वाली कार्मण वर्गणाओं में अनेक प्रकार का स्वभाव पड़ना प्रकृति बन्ध है, यह आठ प्रकार का होता ७५ है। उन के नाम ये हैं। १- ज्ञानावरण कर्म! ५ - आयु कर्म! २ - दर्शनावरण कर्म! ६ - नाम कर्म! ३ - वेदनीय कर्म! ७ - गोत्र कर्म! ४ - मोहनीय कर्म! ८ - अन्तराय कर्म! इन कर्मों में ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय व अन्तराय ये कर्म घाती हैं, और शेष कर्म अघाती ७६ हैं। कर्म संस्कार मात्र ही नहीं है, किन्तु एक वस्तुभूत पुद्गल पदार्थ है। ३ - सूक्ष्म - इस का अर्थ है छोटापन, यह दो प्रकार का है -अन्त्य सूक्ष्म और आपेक्षिक सूक्ष्म ४ - स्थूल - इस का अर्थ है बड़ापन। इस के दो भेद हैं। अन्त्य स्थूल, जो महास्कन्ध में पाया जाता है। आपेक्षित स्थूल जो छोटी बड़ी वस्तुएँ हैं। ५ - संस्थान - इस का अर्थ है -आकार, रचना विशेष इसके दो भेद हैं -इत्थं संस्थान, अनित्थं संस्थान। ६ - भेद - इस का अर्थ “खण्ड” है। स्कन्धों का विघटन “भेद" कहलाता है। ७ - तम - जो देखने में बाधक हो और प्रकाश का विरोधी हो। ७७ ८ - छाया - प्रकाश पर आवरण पड़ने पर छाया उत्पन्न होती है, यह प्रकाश का अभाव रूप नहीं है। ९ - आतप - सूर्य आदि के निमित्त से होने वाले ऊष्ण प्रकाश को आतप कहते हैं। १० - उद्योत - चन्द्रमा, जुगनू आदि के शीत प्रकाश को उद्योत कहते हैं। आतप और उद्योत में दोनों, प्रकाश के विभाग हैं। उन्हीं के रूप में उस का वैज्ञानिक दृष्टि से विवेचन हुआ है। सारपूर्ण भाषा में यही कहा जा सकता है कि जैन दर्शन में परमाणु विज्ञान और पदार्थ-दर्शन निश्चल एवं समग्र निरूपण है। अति स्पष्ट है कि उक्त दर्शन में आध्यात्मिक विवेचन जिस सीमा तक पहुंचा हुआ है, उसी प्रकार पदार्थ विश्लेषण भी पहुंच चुका है। जिस की सर्वांगपूर्ण विचारणा समय और श्रम साध्य अवश्य है। मर्यादित पृष्ठों के कारण उक्त निबन्ध में पुद्गलास्तिकाय का दिशा-निर्देश के रूप में आलेखन किया गया है, प्रतिपाद्य विषय के बहुविध आयामों का संस्पर्श भी नहीं किया है। तथापि इसे अगाध-अपार महासागर में से एक बून्द का ग्रहण करने के लिये किये गये चंचुपात की भांति मान कर विशेष अध्ययन की ओर जिज्ञासु जन अग्रसर होंगे। यही अन्तहृदय की आकांक्षा है, मंगल मनीषा है। ख- स्थानांग सूत्र- ८/३/५९६! घ- भगवती सूत्र श. ६ उद्धे. ९! च- प्रथम कर्म ग्रन्थ गाथा -३! क- उत्तराध्ययन सूत्र -अ. ३३ गा. २-३! ग- प्रज्ञापना सूत्र २३/१ ड- तत्त्वार्थ सूत्र -८/५! छ- पंच संग्रह -२/२! क- पंचाध्यायी २/९९८, २९९ सर्वार्थसिद्धि अ. ५ सू. २४! ख- गोस्मटसार जीवकाण्ड -९! ७६ ७७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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