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________________ श्रमणी परम्परा को कुचेरा की देन • साध्वी श्री बसंत कुंवर कुचेरा नागौर (राज.) जिले में अजमेर से नागौर जाने वाले मार्ग पर स्थित है। इस क्षेत्र पर आचार्य श्री जयमल जी म. तथा उनकी परम्परा के साधु-साध्वियों की विशेष अनुकम्पा रही है। यही इसी परम्परा की श्रमणियों का उल्लेख किया जा रहा है जिनका सम्बन्ध कुचेरा से रहा है। मेरी स्मृति के अनुसार महासती श्री जमना जी म.सा. एवं महासती श्री तुलछा जी म. स्थिरवास में कचेरा में रही। सदरुवा महासती श्री कानकंवर जी म. कचेरा के ही थे और वर्षों तक महासतियाँ जी की सेवा में रहे। आप ही की शिष्या महासती श्री चम्पा कुंवर जी म. भी कुचेरा के ही थे। इन दोनों महासतियों ने कुचेरा से विचरण करते हुए सुदूर दक्षिण भारत में जैन धर्म की ध्वजा फहराई। इनके अतिरिक्त कुचेरा से सम्बन्धित अन्य महासतियों का विवरण इस प्रकार हैं:• -वि.सं. २००६ ज्येष्ठ शुक्ला ५ को महासती श्री सोहन कुंवर जी म. की दीक्षा हुई। • -वि.सं. २०२५ में मेरी दीक्षा भी यहीं हुई। मेरा जन्म भी यही हुआ। • -वि. सं. २०२७. में महासती श्री नन्दाजी के सान्निध्य में श्री संतोष कुंवर जी म. की दीक्षा हुई। • -महासती श्री उमराव कुंवरजी म. “अर्चना" की शिष्या महासती श्री प्रतिभा कुमारी जी म. का जन्म भी कुचेरा में ही हुआ। दीक्षा वि. सं. २०३१ में महामंदिर में हुई। -महासती श्री कंचन कुंवरजी म. भी कुचेरा के ही है और आपकी दीक्षा वि. सं. २०३४ में नौरवा चांदावतों का में हुई। -महासती श्री झणकार कुंवर जी म. की अनुकम्पा भी इस क्षेत्र पर रही। आपके सान्निध्य में यहाँ वि. सं. २०३२ में आशाजी और चंचल जी दो बहनों की दीक्षा हुई। -वि. सं. २०४३ में श्री मनीषा जी ने तथा वि. सं. २०४६ में आपकी सुपुत्री सविता जी ने भी कुचेरा में ही संयमव्रत अंगीकार किया। • -वि. सं. २०४४ में महासती श्री सोहन कुंवरजी के सान्निध्य में श्री मणि प्रभा जी की दीक्षा हुई। • -वि. सं. २०४५ में महासती श्री झणकार कुंवर जी म. ने अपनी नश्वर देह का त्याग कुचेरा मेंकिया। • -श्रीमान प्रेमराज जी बोहरा की बहन श्री हुलसा जी की दीक्षा भी यही हुई थी। .. कुचेरा से सम्बन्धित जैन श्रमणियों का यह संक्षिप्त विवरण हैं। यदि प्रयास किया जावे तो इस सम्बन्ध में और भी अधिक जानकारी उपलब्ध हो सकती है, जो जैन इतिहास के साथ ही साथ कुचेरा के इतिहास की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण उपलब्धि हो सकती है। विश्वास है कि जिज्ञासु पाठक इस दिशा में कुछ प्रयास अवश्य करेंगे। इन्हीं शब्दों के साथ में सद्गरुवाश्री तथा गुरु बहन परम विदुषी महासती श्री चम्पाकुंवर जी म. के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करती हूँ। (६०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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