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बुढापो दुःखकारी है
एक सेठजी आपनी जवानी रे माय घणों ही कमायो। आखा दिन लाबूजी लाबूजी करता रेता। नी रात रो बैरो न नी दिन रो बलद रे जियान आरधे दिन करटा रेता। ईश्वर की कृपा सुं चार छोकरा ने पोता पोती मोकला ही हा। पण कियां करे है कि उगतोड़ा सूरज न सब जणा नमो करें, आतीयोड़ा के कोनी। बुढ़ापो को किणी बाप रो कोनी। सेठजी अवस्था रे मुजब गोड़ाना दे दिया।
हां, भाया बुढ़ापो बुरो घणो है किया करे है, “बुढ़ापो सबने बुरों, जिणों बुरो है नरा बारे तो छोरा हंसे से ढोड़ नहीं है धरा!
सेठजी रे माय आ बात सांची रैगे सारो दिन खे खे करता रेता, न आ आ करता रेता। सेठजी रे बेटा दी भुआड़िया कांठी दरान रेगी। मन ही मन में बोलती रेती के ओ बूढ़ो कद मरे ने कद माथो छोड़े। बेटा री लुगाया एक तरकीब। सोची अर आपरा भरता ने कैवण लागी के आने पोल रे मायने बैठाये दो।
आपरी घर वाली रे केणा में मुजब सेठजी ने पोल रे मायने बैठाय ने हाथ रे माय एक घंटी दे दी। और सेठजी ने बताय दियो के आपरे जीमण री मन में आवे जणे घंटी बजाय दी जो। सेठजी कियां मुजब करने लागा काई करें, जोर कोनी चाले।
पण एक दिन जोग की बात, सेठजी रो पोतो रमता - खेलता घंटी लेकर चाली गयो। छोरा रो बाप पूछ्यो के आ घंटी क्यां सूं लायो। छोकरों बोल्यो दादों सा कनासूं लायो। अरे गेला दादो सा. ने भूखलागी तो वे घंटी बिना आपरो काम की कर चलाय।
छोरो छट बोल्यो आ तो ठीक है बापू पर मैं थाणो बेटो हूं। जद थे बूढ़ा हो जावेला जणे आ घंटी थाणे काम आ जाती। अर बिना पईसा काम पईसा काम बण जासी। सेठजी री आँख्या खुलगी।
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