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________________ महासती श्री कानकुवंर जी म. : जीवन दर्शन • - साध्वी - श्री कंचन कुवर यह भारत भूमि रत्नगर्मा वसुंधरा है। इस पावन भूमि पर अनेकानेक भव्य आत्माओं ने जन्म लेकर अपना जन्म तो सफल बनाया ही है, साथ ही उन आत्माओं ने अपने उपदेशों से अन्य लोगों का जीवन भी प्रशस्त बनाया है। वर्तमान समय में भी उन महान विभूतियों की शिक्षायें समाज का मार्गदर्शन कर रही हैं। उनकी शिक्षाओं में आध्यात्मिक संदेश के साथ ही सामाजिक मूल्यों का अखूट खजाना सुरक्षित है। भारत. वर्ष का ही एक भाग है/प्रांत है राजस्थान, जो किसी समय राजपूताना के नाम से जाना जाता था। राजस्थान की धरती त्याग और बलिदान की धरती है। यहां अनेक महापुरुषों ने जन्म लेकर अपने कर्तत्व से इसकी कीर्ति में चार चांद लगाये हैं। ऐसी ही महान विभूतियों में एक नाम अध्यात्म योगिनी महासती श्री कानकुवंरजी म.सा. का भी लिया जाता है। महासतीजी का जीवन जहां एक ओर सरल था, वहीं दूसरी ओर साधना से ओतप्रोत था। जन्मः जन्मभूमिः परिवार राजस्थान धीरों और संतों की भूमि रही है। यहां अनेक धर्मवीर, तपवीर, कर्मवीर, दानवीर और शूरवीर हुए हैं। उनकी कीर्ति गाथाएँ आज भी चारों और सुनाई जाती है। इन वीरों का जीवन विद्यमान समाज को नित्य नई प्रेरणा देता रहता है, मार्गदर्शन करता रहता है। ____ पश्चिमी राजस्थान में एक जिला है नागौर। इसी नागौर जिले में एक कस्बाई गांव है, कुचेरा। कृष्ण भक्त कवयित्री मीराबाई की जन्म भूमि मेड़ता सिटी और नागौर के मध्य है यह कुचेरा। कुचेरा एक ऐसी. पुण्यभूमि है जहां अनेक महापुरुषों ने जन्म लिया है एवं अनेक महापुरुषों तथा तपस्वियों ने यहां साधना कर अपने लक्ष्य को प्राप्त किया है। इस पुण्य भूमि में धर्म की गंगा निरंतर प्रवाहित होती रही हैं। इसी पुण्य भूमि कुचेरा में श्रीमान सिंभूमलजी सुराणा हुए। वे समाज के प्रत्येक कार्य में सहयोग करने वाले एक निष्ठावान श्रावक थे। सदैव सामायिक, प्रतिक्रमण करने के साथ तिथियों में पौषधोपवास किया करते थे। आपके पुत्र श्रीमान बींजराज जी सुराणा अपने पिता के अनुरूप ही गुणवान थे। आपकी पत्नी श्रीमती अणची बाई, पतिपरायणा और धर्मपरायणा नारी थी। श्रीमान बींजराज जी के दो पुत्र और तीन पुत्रियां थी। बडे पुत्र का नाम स्व. श्रीमान फूसालाल जी सुराणा है, जो कटंगी (मध्य प्रदेश) में निवास करते थे। दूसरे पुत्र श्रीमान कालूरामजी बीस वर्ष की अल्पायु में ही परलोक पधार गये। बड़ी पुत्री सुगनबाई का भी स्वर्गवास हो गया । दूसरी पुत्री कानीबाई का शुभ सूचक स्वप्न के पश्चात वि.सं. १९६८, भाद्रपद कृष्णा - अष्टमी को जन्म हुआ। भाद्रपद कृष्णा अष्टमी को जन्माष्टमी का त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन योगीराज श्री कृष्ण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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