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________________ आप एक सिंहस्थ उपन्यासकार भी थे। पौराणिक कथावस्तु के आधार पर आपने पांच उपन्यास लिखकर प्रकाशित करवाये। पुराणाधारित कथावस्तु को आपने अपनी विशेष चिन्तन-प्रवणता एवं उपन्यास कला वैदुष्य से प्राचीनता के परिप्रेक्ष्य में आधुनिकता से संपृक्त कर दिया हैं। इन उपन्यासों को पढ़ते समय पाठक ऐसा अनुभव करने लगता है कि कथावस्तु पुरातन नहीं है अपितु वर्तमान की समस्याओं से ओपप्रोत युवाचार्य श्री मधुकर मुनिजी म.सा. एक सफल प्रवचनकार थे। आपके प्रवचनों में उनका चिंतन स्पष्ट दृग्गोचर होता है। आपके चार पांच प्रवचन संग्रह भी प्रकाशित हो चुके है। आपका प्रवचन साहित्य, धार्मिक,सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक गरिमा से मंडित है। इसमें व्यक्ति और समाज, गृहस्थ और साधु, धर्म और अर्थ, शाश्वत मूल्य और युगीन मूल्य से सम्बद्ध विवेचन-विश्लेषण हैं। युवाचार्य श्री उच्चकोटि के कवि भी थे। आपने संस्कृत में काव्य रचना की है, जो अद्यावधि अप्रकाशित है। जिसके प्रकाशन की अपेक्षा है। युवाचार्य श्री साधक होने के साथ साथ संवेदनशील कवि, सरस कथाकार, ओजस्वी प्रवचनकार और गूढ आगमवेत्ता थे। इन सभी दिशाओं में आपने उपयोगी और ज्ञानवर्धक साहित्य की रचना की है। आपके कृतित्व पर शोध परक लेखन की आवश्यकता है। शिष्य-प्रशिष्यः पू.युवाचार्यश्री के दो शिष्य हुए। जिनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार हैं: उपप्रवर्तक मुनिश्री विनय कुमार 'भीम' जन्म:- वि.सं. २०१२ ज्येष्ठ शुक्ला १५, दि. ५ जून १९५५ स्थान:- गाजू (कुचेरा) जि. नागौर (राजस्थान) माता:- श्रीमती सजनीबाई पिता:- श्री रामचन्द्र जी रावणा राजपूत दीक्षा:- वि.सं. २०३८ माघ शुक्ला ११, २६ जनवरी १९७२ नोखा चांदावतों का जिला नागौर (राजस्थान) गुरुदेवः- उप प्रवर्तक स्वामीजी श्री ब्रजलाल जी म.सा. एवं युवाचार्य श्री मिश्रीमल जी म.सा. "मधुकर अध्ययनः- हिन्दी, जैन सूत्र व काव्य आदि विशेष रुचिः- स्वर मधुर, गायन का शौक, कविता, उपन्यास में रुचि। सेवाभावी तथा सदैव प्रसत्र मुख। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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