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________________ यत्किञ्चित ग त वर्ष साध्वी श्री चन्द्रप्रभाजी म. सा. का एक पत्र मिला था। इस पत्र में उन्होंने अपनी सद्गुरुवर्य्याश्री परमविदुषी महासती श्री चम्पाकुवंर जी म. सा. की स्मृति में एक स्मारिका के प्रकाशन के सम्बन्ध में अपनी जिज्ञासा अभिव्यक्त की थी। स्मारिका जिस स्वरूप में निकालने का विचार था, उसको देखते हुए मैंने सुझाव दिया था कि यदि इसे स्मृति ग्रंथ का स्वरूप दे दिया जावे तो अधिक उपयोगी प्रकाशन होगा। और इसके साथ ही एक संक्षिप्त रूपरेखा भी उनके अवलोकनार्थ / अनुमोदनार्थ उनकी सेवा में भेज दी। मुझे तब हार्दिक प्रसन्नता की अनुभूति हुई जब उनका सकारात्मक उत्तर मिला और साथ ही स्मृतिग्रंथ के लिए आवश्यक तैयारियाँ करने का निर्देश भी मिला। इस सूचना के प्राप्त होते ही मैं सक्रिय हो गया और विद्वान मुनि भगवंतों, विदुषी-साध्वियों एवं जैन धर्म दर्शन के विशिष्ट विद्वानों से विभिन्न विषयों पर शोध परक एवं चिंतन परक आलेख भेजने के लिए आग्रह पत्र दिये गए। कुछ ही समय पश्चात् परिणाम भी सामने आने लगे। विद्वान लेखकों की ओर से आलेख आने लगे तथा कुछ सुझाव भी प्राप्त हुए, जिन पर गंभीरता से विचार कर उन्हें कार्यान्वित करने का प्रयास भी किया गया। स्मृति ग्रंथ से सम्बन्धित आलेख आदि अपेक्षा से भी कम समय में यथेष्ट रूप से हमें प्राप्त हो गये। इसमें उल्लेखनीय बात यह है कि जिन-जिन विद्वानों से जिन-जिन विषयों पर अपना आलेख भेजने के लिये निवेदन किया गया था, लगभग सभी ने उसके अनुरूप आलेख भेज कर सहयोग प्रदान किया। इस आत्मीय सहयोग के लिए मैं समस्त विद्वान लेखकों का हृदय से आभार मानता हूँ। - स्मृति ग्रंथ हेतु प्राप्त समस्त सामग्री का खण्डवार वर्गीकरण कर उसका अवलोकन सम्पादन / पुनर्लेखन आदि किया गया । प्राप्त सामग्री को मुद्रणार्थ देने के पूर्व मार्गदर्शन प्राप्त करना आवश्यक समझा गया। साध्वी जी श्री बसंतकुवंर जी म.सा., साध्वीजी श्री कंचनकुवंर जी म. सा. एवं इस ग्रंथ की प्रधान सम्पादिका साध्वीजी श्री चन्द्रप्रभा जी म. सा. की सेवा में सर्वप्रथम प्राप्त सामग्री अवलोकनार्थ प्रस्तुत की गई । तीनों साध्वियाँजी ने ध्यानपूर्वक समस्त सामग्री का अवलोकन कर कुछ सुझाव भी दिये। साध्वी जी श्री चन्द्रप्रभाजी म. सा. का इस सम्बन्ध में विशेष उत्तरदायित्व होने से उन्होंने समस्त सामग्री का आद्योपांत अध्यनय किया और जहां भी आवश्यक समझा गया, संशोधन, परिवर्तन एवं परिवर्द्धन किया। इस सम्बन्द में उनके द्वारा किया गया परिश्रम प्रशंसनीय है। उन्होंने पूर्ण लगन, निष्ठापूर्वक अपने दायित्व का निर्वाह किया। इसके साथ ही उनसे मुझे यह भी निर्देश मिला कि समस्त सामग्री एक बार श्रद्धेय आचार्य श्री देवेन्द्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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