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नियति इस साध्वी समूह पर क्यों न किया ख्याल, जरा भर॥१०॥ सेवाभावी 'वसंतकुंवर जी 'कंचनकँवरजी' मिले प्रवास में। 'चेतनप्रभा' चन्द्रप्रभा 'मुस्कानी मधुर- वृति - व्यवहार इनके पास में॥११॥ 'सुमन सुधा जी' मधुर कंठ से भक्तिगान सुनाती जाती। अक्षय ज्योति' मधुर व्यवहार से सब का मानस झट मोह जाती॥१२॥ ये साध्वी मण्डल गुरनी-विहीन
कितना क्षोभ भरा है मन में। 'मुस्कानी के पत्र से प्रकट हो रहा, न रहा स्फूर्ति इस तन में॥१३॥ शिष्या मण्डली सदा जहां में, पाती रहे सुयश- कामना। साध्वी-द्वय का अभिनन्दन कर, मेरी शुभ यही चाहना॥१४॥ ढाढस लेना 'वसंत' - 'कंचन 'चेतन चन्द्र मुस्कानी जी। 'सुमन' 'अक्षय' अक्षत हो, 'नमन' साध्वी गुण खानी जी॥१५॥
मरुधरा की महान सती
(तर्ज- दूर कोई गाए)
साध्वी श्री तरुणप्रभा 'तारा'
मरुधरा की सति महान सतियों में थी बड़ी पुण्यवान॥टेर॥ कान नाम प्यारा हो नमन हमारा हो॥१॥ सरदारकंवर की शिष्या प्यारी। सेवागुण था अतिभारी॥ सब मन भाया हो (नमन)॥२॥ कुचेरा में जन्म लिया। बिजराज जी हरसाई जिया॥ आच्छी मन हुलसाई हो (नमन)॥३॥ मरुधरा के मंत्री थे। हजारी गुणधारी थे।
संयम आप लीनो हो (नमन)॥४॥ बीस साल में दीक्षा लीनी। कुचेरा की थी पुण्यवानी॥ ब्रज मधुकर की शिष्या नामी हो। (नमन)॥५॥
आगम की ज्ञाता थी। मधुर व्याख्याता थी ज्ञान के भंडारी हो (नमन) ॥६॥ महागुणधारी थी। शिष्यों की प्यारी थी॥ संघ सहारा हो (नमन) ॥७॥ मद्रास में स्वर्ग गयी।
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