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रता, मन की पवित्रता, दयालुता, एवं माधुर्य, में किए सन् १९८० में श्रद्धेय गुरुदेव श्री का वर्षावास आपके जीवन की श्रेष्ठ तथा स्तुत्य निधि है। उदयपुर में था मैं भी उस वर्षावास में गुरुदेव श्री आपकी चिन्तनशीलता, दीर्घर्शिता, चरित्रबल के सान्निध्य में धार्मिक अध्ययन करता था। मेरी महान् है। आपकी संयम साधना अतुलनीय है। उत्कट भावना दीक्षा ग्रहण करने की थी। समयमहाश्रुत ज्ञानी आचार्य श्री भद्रबाहु ने साधक के समय पर महासती श्री पुष्पवतीजी मुझे ज्ञान-ध्यान विषय में कहा है
की प्रेरणा प्रदान करतीं। उनके मृदु व्यवहार को थोवाहारो, थोवभणिओ, जो होइ थोवनिहो य । देख कर मेरा हृदय श्रद्धा से नत हो जाता था। थोवोवहि उवगरणो, तस्सह देवा वि णमसंति ।। सन् १९८२ में मेरी दीक्षा गढ सिवाना में हुई।
-आवश्यक नियुक्ति दीक्षा के पश्चात् गुरुदेव श्री का वर्षावास मरुधरा अर्थात् जो साधक थोड़ा खाता है, थोड़ा बोलता
. की राजधानी जोधपुर में हुआ। और सन् १९८३ थोड़ी नींद लेता है, थोड़ी ही उपकरण आदि .
का वर्षावास गुरुदेव श्री का मदनगंज, किशनगढ़ में सामग्री रखता है, उस (संयमी) साधक साधिका
हुआ। इन दोनों ही वर्षावासों में महासती श्री को देवता भी नमस्कार करते हैं। साध्वीजी उक्त
पुष्पवती जी का सानिध्य मुझे मिला और मैंने सूक्तिको चारितार्थ कर रही है।
अनुभव किया कि महासती जी स्वभाव से सरल
हैं हृदय से उदार हैं। उनमें सहज गाम्भीर्य है। __ मुझे यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता हुई कि परम
उनका अध्ययन विशाल और तलस्पर्शी है। मैं विदुषी साध्वीरत्न श्री पुष्पवतीजी के दीक्षा
उनसे बहुत ही प्रभावित हुआ हूँ। स्वर्ण जयन्ती के उपलक्ष में अभिनन्दन ग्रन्थ प्रका
अभिनन्दन की इस मंगलमय वेला में; मैं यह शित होने जा रहा है।
हार्दिक मंगल कामना करता हूँ कि कि वे पूर्ण इस शुभ अवसर पर उनके दीर्घायु होने की
स्वस्थ रहकर अहिंसा सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और मंगलमय कामना करते हुये हार्दिक अभिनन्दन परिग्रह के पावन सिद्धान्तों तो जन-जन के मन में करता हूँ।
स्थापित करें। आपका जीवन कमल की तरह निर्लिप्त तो आपके विचार सूर्य की तरह तेजस्वी हैं आप श्रमणसंघ की एक ओजस्वी, तेजस्वी साध्वीरत्न हैं। आप से संघ को महान आशा है। मैं आपके उज्ज
वल-समूज्जवल भविष्य की मंगल कामना करता कमल की तरह निर्लिप्त -नरेश मुनि
पुष्प सूक्ति कलियां alishsindesesesechodaviededasti desesedaddedesesedootoofedesesesedosdasesedese
- असत्य कभी अपने रूप में चल नहीं सकता, परम विदूषी साध्वीरत्न पुष्पवती जी का उसे सत्य का बाना पहना कर ही पेश किया जाता जीवन अनेक विशेषताएँ लिए हुए हैं। उनमें अलौ- है। किक प्रतिभा है, गजब की सहन शक्ति है। उनकी प्रमाद युक्त मन वचन काया के द्वारा जो
व मद्रा को निहार कर दर्शक प्रभावित कछ भी विचार, कथन या कार्य किया जाय वह हुए बिना नहीं रहता । वे एक आदर्श साध्वी है। असत्य अथवा अनृत है।
मैंने उनके दर्शन गृहस्थाश्रम में भी उदयपुर
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कमल की तरह निलिप्त ! ३६
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