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साध्वीरत्नपुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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चार्य श्री जी की ज्येष्ठ भगिनी परम विदुषी साध्वी विविध गुणों का संग म . रत्न श्री पुष्पवती जी भी पधारी और आचार्य
श्री के सानिध्य में उनका वर्षावास भी अहमदनगर -श्री कुन्दन ऋषिजी में हुआ। चार माह तक महासतीजी को बहुत ही
निकट से देखने का सुनहरा अवसर मिला । और
अनेक बार आप श्री के प्रवचनों को भी सुनने का परम विदुषी साध्वीरत्न श्री पुष्पवतीजी का सौभाग्य मिला। आप जब कभी भी किसी भी विषय व्यक्तित्व बहुत ही विलक्षण है, इनका अध्ययन पर बोलती हैं तो उस विषय के तल-छट तक पहँगम्भीर है । चिन्तन गहरा है सन् १९६४ अजमेर में चती हैं । सूक्तियाँ-युक्तियाँ और रुपक के माध्यम से शिखर सम्मेलन का भव्य आयोजन था, उस विषय को इतना सरल-सरस बनाकर प्रस्तुत करती सम्मेलन में सम्मिलित होने के लिए महामहिम हैं कि श्रोता सहज ही विषय को हृदयंगम कर पूज्य गुरुदेव बम्बई घाटकोपर से विहार कर तेजी से लेता है। उस दिशा में कदम बढ़ाते हुए विजय नगर पधारे। मैंने महासती जी को, स्वाध्यायी बन्धुओं को उस समय गुलाबपुरा में सर्व प्रथम महासती पुष्प- पढ़ाते हुए भी देखा है । वे एक-एक बात को बहुत वतीजी से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ। उस ही सरल रीति से समझाती हैं। पहले मूल पाठ पर समय मेरी दीक्षा को सिर्फ दो ही वर्ष हुए थे । प्रथम अर्थ करती हैं, फिर विषय का विवेचन इस प्रकार दर्शन में ही मैंने यह अनुभव किया कि महासती करती हैं कि कठिन से कठिन विषय भी समझने में पुष्पवती जी एक प्रताप पूर्ण प्रतिभा की धनी साध्वी कठिनता नहीं होती। हैं । अजमेर गुलाबपुरा की यात्रा में दो तीन-बार मैंने वर्षावास में यह अनुभव किया कि महासती महासती जी से मिलने का अवसर मिला । अजमेर जी का हृदय मक्खन से भी अधिक मुलायम है। में पूज्य गुरुदेव श्री को आचार्य पद प्रदान किया किसी भी दुःखी व्यक्ति को देखकर उनका कोमल गया और उसकी जो चद्दर रश्म हुई वह बहुत ही हृदय द्रवित हो जाता है। साथ ही उनका हृदय दर्शनीय थी। अजमेर से आचार्य प्रवर पंजाब, सरल भी है। इस कारण उनके जीवन में विविध हरियाणा, उत्तर-प्रदेश को स्पर्शते हुए राजस्थान में गुणों का मधुर संगम हुआ है। मैं अभिनन्दन के पधारे किन्तु महासतीजी से पुनः मिलने का अवसर पावन प्रसंग पर अपनी ओर से श्रद्धा सुमन समर्पित प्राप्त नहीं हुआ।
कर रहा हूँ। सन् १९८७ में पूना सन्त सम्मेलन का नव्य-भव्य पुष्प सूक्ति कलियां आयोजन पुण्य भूमि पूना में हुआ। इस सम्मेलन में असत्याचरण मनुष्य को परमात्मा से दूर दूर-दूर से सन्त और सती वृन्द का पदार्पण हुआ। कर देता है, और मानव समाज जो बहुत हानि पहुंगम्भीर विचार चर्चाएँ हुई। श्रमणसंघ को सुदृढ़ चाता है। बनाने का उपक्रम किया गया। साहित्य मनीषी । असत्य परलोक के लिए दुःखदाय है । इस श्री देवेन्द्र मुनिजी उपाचार्य पद और डॉ. शिव मुनि लोक में भी असत्यवादी की निन्दा जी को युवाचार्य पद देकर श्रमणसंघ की गरिमा उसकी सच्ची बात पर भी विश्वास नहीं करना । में अभिवृद्धि की गई। इस सम्मेलन में हमारे उपा
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२६] प्रथम खण्ड : शुभकामना : अभिनन्दन
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