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साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
प्रभावतीजी स्तोक (थोकड़े) साहित्य का गम्भीर अर्थात जितने जीव में वर्तमान हैं उतने ही बने रहें अध्ययन हैं। जैन आगम के गम्भीर रहस्यों को वह काल उन नारक जीवों की अपेक्षा अशुन्य समझने के लिए स्तोक साहित्य कुंजी के समान है। काल है । महासती पुष्पवतीजी को आगम व्याकरण न्याय मैंने पुनः जिज्ञासा प्रस्तुत की-शून्यकाल किसे और दर्शन का गहरा परिज्ञान है। मैंने सहज ही कहते हैं ? महासती से पुष्पवतीजी पूछा- व्यवहारराशि और उन्होंने समाधान करते हुए कहा-सातों नरकअव्यवहारराशि किसे कहते हैं ? महासतीजी ने भूमियों में से एक जीव वहाँ से निकलकर पुनः वहाँ कहा-निगोद के जीव जो निगोद को छोड़कर अन्य पर पैदा होता है । तब तक पूर्ववर्ती सभी जीव वहाँ किसी भी गति या स्थान पर उत्पन्न न हुए हों, वे जीव से निकल जाते हैं। एक भी जीव शेष नहीं रहता। अव्यवहार राशि कहलाते हैं। और व्यवहार का वह काल शन्यकाल कहलाता है। अर्थ भेद-विभाग है । जो जीव अनेक भेदों में विभक्त
मैंने महासतीजी से पूछा-अपवर्तनकरण और हैं वे व्यवहार राशि के जीव कहलाते हैं। व्यवहार
उद्वर्तनकरण किसे कहते हैं ? का दूसरा अर्थ उपभोग भी है जो जीव हमारे व्यवहार में यानि उपयोग में आते हैं वे व्यवहार राशि के
महासतीजी ने कहा-जीव का वह प्रयत्न
जिससे कर्मों की स्थिति में ह्रास होता है, वह जीव हैं । निगोद के सूक्ष्म जीव अव्यवहार राशि के । जीव कहलाते हैं। वे सभी जीव समान हैं। उनकी
अपवर्तनकरण है । तथा जीव का वह प्रयत्न जिससे अवगाहना स्थिति,आहार, उच्छ्वास निःश्वास, आदि
कर्मों की स्थिति और रस में वृद्धि होती है वह में कोई अन्तर नहीं होता। इन जीवों के जन्म और
उद्वर्तनकरण है। अपवर्तनकरण और उद्वर्तनमृत्यु भी साथ-साथ ही घटित होते हैं। अव्यवहार
करण इस विचारधारा का प्रतिपादन करते हैं कि राशि के जीवकाल लब्धि के योग से व्यवहार राशि आबद्धकम की स्थिति और उसका अनुभाग एकान्त में संक्रात होते हैं। अव्यवहार राशि से जीवों का
___रूप से नियत नहीं है। उनमें अध्यवसायों की प्रबनियात होता है, पर आयात नहीं। जैन दार्शनिकों लता से परिवर्तन भी हो सकता है। कितनी दीवार का यह मन्तव्य हैं कि अव्यवहार राशि के जीव ऐसा भी होता है कि प्राणी ने अशुभ कर्म का बन्ध कभी समाप्त नहीं होते। व्यवहार राशि से जितने
किया। उसके पश्चात् वह शुभ कार्य में लग गया। जीव मुक्त होते हैं, उसकी क्षति पूर्ति अव्यवहार
जिसका असर पहले बांधे हुए अशुभ कर्मों पर गिरता राशि से होती है। व्यवहार राशि के जीव संख्या ह
है। फलस्वरूप जो लम्बी काल मर्यादा है और विपाक की दृष्टि से अनन्त है। पर वे अव्यवहार गत
शक्ति की प्रबलता है। उसमें न्यूनता आ जाती है। राशि जीवों के अनन्तवें भाग में भी नहीं आते । वह
इसी प्रकार किसी व्यक्ति ने शुभ कार्य किया और | ऐसा अक्षयकोष है जो कभी भी समाप्त नहीं उससे उसने पुण्यकर्म का बन्धन किया । उसके होता। वहां पर चैतन्य का विकास नहीं होता।
पश्चात वह पाप कृत्य करता है तो पूर्व बद्ध पुण्यकर्म अव्यवहार राशि में केवल एक स्पर्शनेन्द्रिय होती है। की स्थिति और अनुभाग में मन्दता आ जाती है।
इस प्रकार मैंने अनेक प्रश्न महासतीजी से मैं इतनी स्पष्ट व्याख्या सुनकर प्रभावित हुआ। किए और उनसे सटीक समाधान सुनकर मुझे बहुत मैंने दूसरा प्रश्न किया । अशून्यकाल क्या है ? ही प्रसन्नता हुई। मुझे यह अनुभव हुआ कि महा
महासतीजी ने बताया-सात नरकभमियों में सतीजी प्रबल प्रतिभा की धनी हैं। जितने जीव वर्तमान में हैं। उन जीवों में से कोई भी श्री देवेन्द्र मुनिजी से अजमेर सम्मेलन के जीव नरक से न निकले और न नया उत्पन्न हों। पश्चात् सन् १९८४ और १९८५ में देहली, बड़ौत व
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१०। प्रथम खण्ड : शुभकामना : अभिनन्दन
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