________________
साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
षट्चक्र मूर्ति
सहस्त्रदलपद्म
द्विदलपद्म
षोडशदलपद्म
द्वादशदलपदा
दशदलपद्म
षट्दलपड़ा
चतुर्थदलपद्म
शून्य चक्र
803
16 आज्ञाख्यचक्र
- विशुद्वारव्यचक
अनाहतचक्र
- मणिपूरकचक्र
स्वाधिष्ठान चक्र
आधारवक
प्राणशक्ति कुण्डलिनी एवं चक्र साधना
- डा. म. म. ब्रह्ममित्र अवस्थी
योगशास्त्र की अधिकांश शाखाओं - हठयोग, लययोग एवं तन्त्रयोग आदि में कुण्डलिनी साधना की विस्तारपूर्वक चर्चा हुई है । हठयोग के ग्रन्थों में इसे सबसे अधिक महत्त्व दिया गया है और वहाँ इसे समस्त साधनाओं में श्रेष्ठ तथा मोक्ष द्वार की कुञ्जी कहा गया है। इस प्रकरण में कुण्डलिनी क्या है ? उसके जागरण का तात्पर्य क्या है ? तथा कुण्डलिनी जागरण के लिए साधना किस प्रकार की जाती है ? इन तीन प्रश्नों पर ही विचार किया जा रहा है । कुण्डलिनी के लिए योगशास्त्र के विवध ग्रन्थों में प्रयोग किये गये नामों में कुण्डली और कुटिलाङ्गी नाम भी हैं, जिनसे विदित है कि इसका भौतिक स्वरूप वक्र अर्थात् टेढ़ा-मेढ़ा है, शायद इसीलिए इसके लिए कई स्थानों पर भुजङ्गी और सर्पिणी शब्दों का भी प्रयोग हुआ है ।" कुछ स्थानों में इसके लिए तैजसी शक्ति, जीव शक्ति और ईश्वरी शब्दों का भी प्रयोग मिलता है, जिससे हमें संकेत मिलता है कि यह एक तेजस शक्ति है, जो शक्ति जीव की स्वयं की अपनी शक्ति है, किन्हीं कारणों से शक्ति स्वभावतः उद्ध नहीं रहती, किन्तु इसे यदि जागृत किया जा सके तो साधक में अनन्त सामर्थ्य ( ईश्वर भाव ) आ जाता है ।
कुण्डलिनी का जागरण क्योंकि अनन्त शक्तियों के साथ-साथ मोक्ष के द्वार तक पहुँचाने वाला है, अतः स्वाभाविक है कि इसके जागरण का उपाय, इसे जागृत करने वाली साधना बहुत सहज नहीं हो । इसी कारण इस साधना को सदा साधकों ने गुरु परम्परा से ही प्राप्त किया है, और गुरुजनों ने अधिकारी शिष्य को ही यह विद्या देनी चाही है । सम्भवतः यही कारण है कि इस साधना का सुस्पष्ट वर्णन किसी ग्रन्थ में नहीं दिया गया है ।
१. हठ प्रदीपिका, घेरण्डसंहिता, योगकुण्डल्युपनिषद्, योगशिखोपनिषद्, मण्डल ब्राह्मणोपनिषद्, तन्त्रसार, ज्ञानार्णवतन्त्र, शिव संहिता आदि । २. हठप्रदीपिका ३. १०४, योगकुण्डल्युपनिषद् | ३. वही ३. १०८ १०६ ।
३०८ | सातवां खण्ड : भारतीय संस्कृति में योग
www.jaineliby