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साध्वीरत्नपुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
__ अनु, मातृ जाति ने हमेगा हो धमको प्रभावना पुरुष] (श्रावक) साधु से अधिक योगदान दिया है । नारो परमात्म भाव में जितनी भोगो-डूबी है, उतना पुरुष नहीं। जेनगासन की प्रभावना, उको, उस का लेट से देवा नार नापन हो धर्म के लेप में सामान पोछे नहीं रही है, बल्कि आगे ही पाई गई है।
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क्यों? क्योंकि उसको पकड तल से होती है। उसकी पकड़ उथली या ऊपर से नहीं हादिकता उसको प्राण-शक्ति है। धर्म में, जन में, मन में, सब जगह उसको पेठ तल में है । ऊपर-ऊपर से कुछ भी करना उसे कभी इष्ट रहा ही नहीं है ।
__ पुरातात्विक इतिहास की ओर उद्ग्रीव होकर देखा जाए तो तब भी नारी की उदारता, दृढ़ता, निष्ठा और लगन के संदर्शन होते हैं। मनुष्य जब-जब युद्धोन्मादी हुआ है, तब-तब नारी ने प्रकाश की अर्चनांजली संजोकर उसके उन्माद को सभत्व के सरोवर में समो देने का प्रयास किया है।
महान विचारक साध्वीरत्न श्री पुष्पवती जो म० भगवान महावीर की उसी परम्परा का जनमंगलकारी एक प्रकाश दीप हैं जो ५० वर्षों से जन-जन में अभेद भाव से महावीर के शासन का चेतना सन्देश देते हुए, भारत के इस छोर से उस छोर तक जनमंगल के दीप जोड़ती चली आ रही हैं।
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जैन शासन में नारी का महत्व : श्री रतनमुनि जी | २८६
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