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FIRROLLARAL
साध्वीरत्नपुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ ।
करने में सफलता पाई जिसे देखकर, विश्व भर के राजनीतिविद् चक्कर में पड़ गये । सन् १९७१ के वर्ष में भारतीय इतिहास का सबसे गोरवशालो अध्याय लिखा गया जब श्रीमती गाँधी ने अपने अदभुत शौर्य, गहरी नीतिमत्ता एवं अपूर्व धैर्य एवं साहस का परिचय देते हुए, न केवल अपने पड़ौसी आक्रान्ता देश पाकिस्तान को नाकों चने चबवा दिये, वरन् आज के विश्व में सैन्यबल में और आयुध-संग्रह में सर्वाधिक शक्तिशाली माने जाने वाले राष्ट्र अमरीका की, बन्दर घुड़कियों की परवाह न करके, और बंगाल की खाड़ो को ओर जलमार्ग से बढ़ते आने वाले सातवें बेड़े की परवाह न करते हुए, बंगला देश के मुक्ति संग्राम को उसके रोमांचकारी सफल अन्त तक पहुँचाकर ही दम लिया।
भारतीय इतिहास के हजारों-हजारों वर्षों में, केवल एक ही ऐसी घटना मिलती है जिससे कि बंगला देश की विमुक्ति एवं पाकिस्तान की इतनी निर्णायक पराजय से तुलना की जा सकती है । और वह घटना है, महावीर श्रीराम द्वारा, लंका-विजय की महा गाथा । इन्दिरा गाँधी ने विश्व भर को यह भी करके दिखा दिया कि जबकि भारत के वीर पुरुषोत्तम राम भारतीय नारी-शिरोमणि देवी सीता को, रावण के कारागृह से मुक्त करा सकते हैं, तथा बिना सुसज्जित राजकीय सेना की सहायता के वनवासी
। रावण की वैज्ञानिक आयुधों से युक्त, महाशक्तिशाली सेना को धराशायी कर सकते हैं, तब भारत की ही एक महानतम वीरांगना, न केवल विश्व भर के पुरुष राजनायिकों एवं सेनानायकों को लज्जित करके, रणभूमि में युगान्तरकारी विजय प्राप्त कर सकती है, वरन् अन्तर्राष्ट्रीय उदारता एवं शालीनता के ऊँचे से ऊँचे मानदण्ड भी स्थापित कर सकती है।
मामा
इन्दिरा गाँधो इस युग की नारी-रत्न थीं। उन्होंने नारी की वात्सल्यमयी करुणा से द्रवित होकर बंगला देश के लाखों, मौत और जिन्दगी के बीच झूलते हुए, स्वतन्त्रता सेनानियों को निष्काम भाव से, ठीक समय पर, सैन्य सहायता एवं आर्थिक मदद पहुँचाई। उन्होंने न केवल बंगला देश के विमुक्तिसंग्राम को सफलता की मन्जिल तक पहुँचाने में सक्रिय सहा यता प्रदान की वरन् करोड़ों शरणार्थी बंगला देश के नर-नारियों को, आतताइयों के हाथों, मृत्यु की दाढ़ों से बचाकर, भूखों मरने से भी, महीनों तक सुरक्षित रखा। उस समय श्रीमती इन्दिरा गाँधी को, लाखों बंगला देशवासियों ने, सहस्र भुजाधारिणी, साक्षात् दुर्गा के रूप में देखा । उन्होंने विश्वभर में शान्ति, सद्भाव एवं निःशस्त्रीकरण के मार्ग पर नेतृत्व प्रदान किया। केवल उन्हीं का उदाहरण विश्व के कल्याण हेतु, नारी की महत्ता स्थापित करने के हेतु, पर्याप्त है।
२८६ | छठा खण्ड : नारी समाज के विकास में जैन साध्वियों का योगदान
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