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साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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हो उठा। उन्होंने तुरन्त संयुक्त राष्ट्र संघ में अपनी आवाज उठाई, उसकी उपेक्षा होते देख भारत के अन्यतम कुशल योद्धाओं को भेजा और कुछ ही दिनों में बंगलादेश को पाकिस्तान के चंगुल से छुड़ाकर स्वतन्त्र कराया।
इससे यह स्पष्ट सिद्ध होता है कि विश्व-शान्ति के कार्य में महिला कितनी कार्यक्षम हो सकती है।
भारतीय स्वतन्त्रता के लिए जब गाँधी जी ने अहिंसक संग्राम छेड़ा तो कस्तूरबा गाँधी आदि हजारों नारियाँ उस आन्दोलन में अपने धन-जन की परवाह किये बिना कूद पड़ीं।
फ्रांसीसी स्वतन्त्रता-संग्राम की संचालिका 'जोन ऑफ आर्क' भी इसी प्रकार की महिला थी। उसने अपनी सुख-सुविधाओं को तिलांजलि देकर भी राष्ट्र की शान्ति के लिए कार्य किया। सेवा और सहानुभूति के क्षेत्र में नारी का योगदान
सेवा और सहानुभूति भी विश्व-शान्ति के दो फेफड़े हैं। भारत की ही नहीं, विश्व भर की महिलाएँ इन दोनों क्षेत्रों में पुरुषों की अपेक्षा आगे हैं। हॉस्पिटलों में घायलों, कुष्ट रोगियों तथा अन्य चेपी एवं दुःसाध्य रोगों से पीडित रोगियों की सेवा के लिए दुनियाँ में सर्वत्र नसें कार्य करती देखी गई हैं। युद्ध में भी घायलों की सेवा-शुश्रूषा प्रायः नसें ही करती हैं । मैंने स्वयं आँखों से देखा है कि आँखों के ऑपरेशन के समय नेत्र रोगी की सेवा शुश्रूषा में सैकड़ों महिलाएँ (जो पेशे से नर्स नहीं हैं) अपना योगदान देती हैं।
बीमारी, प्राकृतिक प्रकोप या उपद्रव आदि मनुष्य की अशान्ति के कारण हैं। इनके प्रकोपपीड़ित जनों की सेवा-शुश्रूषा अथवा रोग-निवारण का उपाय करना भी शान्तिदायक कार्य है। इस क्षेत्र में पुरुषों के अनुपात में, महिलाएं बहुसंख्यक रही हैं। रेड क्रास आन्दोलन को जन्म देने वाली 'फ्लोरेन्स नाइटेंगिल' को कौन नहीं जानता ? अनेक रोगों को मिटाने में अचक 'रेडियम' की आविष्कारक 'मैडम क्यूरी' का नाम विश्व-शान्ति के इतिहास में अमर है । दुर्व्यसनों से बचाने में महिलाओं का हाथ
दुर्व्यसन किसी भी प्रकार का हो, वह मनुष्य के जीवन को अशान्त बना देता है। जो देश दुर्व्यसनों का जितना अधिक शिकार हो जाता है, वहाँ उतनी ही अधिक, लूटपाट, भीति, जनत्रास तनाव, उन्मत्तता आदि बढ़ती जाती है जो अशान्ति के प्रमुख कारण हैं । दुर्व्यसनों से पुरुषों को बचाने में जैन साध्वियों तथा समस्त धर्म की गृहिणियों का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण योग रहा है।
छत्तीसगढ़, मयूरभंज आदि आदिवासी क्षेत्रों में जनता में बढ़ती हुई शराबखोरी तथा नशेबाजी को रोकने के लिए वहीं की एक आदिवासी महिला विन्ध्येश्वरी देवी ने जी-जान से कार्य किया है। वह जहाँ भी जाती, लोगों को पुकार-पूकार कर कहती-"शराब तथा नशैली चीजें छोड़ो, हमारा भगवान् शराब आदि का सेवन नहीं करता। इससे तन, मन, धन और जन की भयंकर हानि है।" उसके इन सीधे-सादे, किन्तु असरकारक शब्दों को सुनकर उस क्षेत्र के लाखों लोगों ने शराब तथा नशैली चीजें छोड दीं । अमेरिकन महिला करीनेशन ने कन्सास परगने में अमेरिकन महिलाओं, बालकों, नौ-जवानों आदि को पुकार-पुकार कर मद्य की बुराइयों से परिचित कराया और छुड़ा दिया।
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२७४ | छठा खण्ड : नारी समाज के विकास में जैन साध्वियों का योगदान
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