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साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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चाहे राजनीति का क्षेत्र हो अथवा आर्थिक या अन्य नारी को अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन उचित रूप में करना है । स्वतन्त्र विचार शक्ति सम्पन्न महिलाएँ अपने दायित्व का पालन करने में सक्षम होती हैं । आज भी मनु की इस उक्ति को पुनः पुनः दोहराया जाता है
"न स्त्री स्वातन्त्र्यमर्हति ।" परन्तु ऐसा कहते समय हम यह मूल जाते हैं कि महिलाओं को समुचित स्वतन्त्रता मिलनी चाहिए परन्तु साथ ही यह स्मर्तव्य है कि कुछ निश्चित मर्यादा का पालन करना उनके लिए अभीष्ट है। अन्यथा समाज में अराजकता फैल जायेगी । नारी वर्ग के प्रति समाज की जो संकीर्ण मनोभावना है उसका परित्याग करना आवश्यक है। आज एक प्रमुख समस्या यह है कि महिलाएँ भयमुक्त नहीं हैं । जिस स्त्री शक्ति की उपासना
"दारिद्र य दुःख भय हारिणी।" के रूप में की गई थी वही आज भयमुक्त नहीं है। स्त्रियाँ निर्भय हों इसके लिए यह आवश्यक है कि देश में उपयुक्त वातावरण बनाया जाय ।
यजुर्वेद की राष्ट्रीय प्रार्थना में राष्ट्र की सुदृढ़ता, सुरक्षा और उत्थान के लिए बौद्धिक अभ्युदय, सैनिक शक्ति की सुदृढ़ता तथा आर्थिक सम्पन्नता की कामना के साथ-साथ यह प्रार्थना की गई है कि हमारे राष्ट्र में सर्वगुण सम्पन्न कत्तृत्ववान स्त्रियाँ हों। वे राष्ट्र के नागरिकों में सुसंस्कार सिंचन करती रहें । कुटुम्ब को कुटुम्ब बनाने के बाद ही वसुधा को कुटुम्ब बनाया जा सकता है। माता, पत्नी, भगिनी, पुत्री आदि रूपों में जब नारी अपनी महती भूमिका निभायेगी तभी विश्व शान्ति का शंखनाद होगा।
पुष्प-सूक्ति-सौरभ------
क्षमा परिस्थितियों से तथा आन्तरिक हिंसाओं से बचने तथा हिंसा की
परम्परा बढ़ने न देने का उत्तम प्रयास है। 1 क्षमा विधेयात्मक अहिंसा को तीव्र और विकसित करने का अपूर्व उपाय
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D जो क्षमाशील है, उसके लिए संसार में कोई शत्रु नहीं, भय नहीं, अन्त
र्द्वन्द्व नहीं। - संसार में कोई भी वस्तु या स्थान ऐसा नहीं है जहाँ सत्य न हो । जिस वस्तु
में सत्य नहीं है वह वस्तु किसी काम की नहीं रह जाती। - सत्य अपने आप में स्वयं सुन्दर है । जगत् में सत्य से बढ़कर सुन्दर कोई वस्तु नहीं है।
-~-पुष्प-सूक्ति-सौरभ २६४ | छठा खण्ड : नारी समाज के विकास में जैन साध्वियों का योगदान
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