________________
అవంతంగాణంలంలంలంలంలంలంలందరితం
वाशीर्वचन
దంతంభందిందండరాంరంరంపరాంతంభంభంధం
नाणेणं दंसणेणं च,
चरित्तण तहेव य।
खंतीय मुत्तीए, वड्ढमाणो भवाहि य ॥
तुम ज्ञान, दर्शन चारित्र क्षान्ति-क्षमा और मुक्ति निर्लोभता के द्वारा आगे बढ़ो।
-उत्तराध्ययन सूत्र २२/२३
जय जय नन्दा ! जय जय भद्दा ! भद्द ते ! अभग्गेहि नाणदसणचरित्तहि अजियाई जिणाहि इंदियाई जियं च पालेहि समणधम्म ॥
हे नन्द ! आपकी जय हो ! विजय हो ! हे भद्र ! आपकी जय हो ! जय हो ! आपका भद्र (कल्याण) हो । निरतिचार ज्ञान-दर्शन और चारित्र से तुम नहीं जीती हुई इन्द्रियों को जीतो, जीते हुए श्रमण धर्म का पालन करो।
-कल्पसूत्र ११२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org