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साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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स्थान दिया गया है। उत्तराध्ययन सूत्र में प्रथम अध्ययन विनय अध्ययन है जिसमें विनय के महत्त्व के साथ गुरु के प्रति शिष्य द्वारा विनय की पर्याप्त व्याख्या की गई है।
विनय को दब्बूपन या मूर्तिवत् बनकर बैठे रहना मान लेना भ्रान्ति होगी। स्वयं भगवान महावीर से उनके प्रधान शिष्य गौतम ने हजारों प्रश्न किए जो भगवती सूत्र में संकलित हैं। केण?णं भंते ! कहकर भगवान के उत्तर पर पूनः प्रतिप्रश्न किये हैं। श्राविका जयन्ती ने भगवान से अनेक जिज्ञासाएँ प्रश्नोत्तर के माध्यम से प्रस्तुत की हैं। कहने का आशय कि जैन विचारधारा जिज्ञासापूर्वक प्रश्नोत्तर व समाधान को शिक्षार्थी का अविनय नहीं मानती। जिज्ञासा, प्रश्नोत्तर, तत्त्व-चर्चा के अनेक स्थल शास्त्रों और ग्रन्थों में आए हैं। इतना होते हुए भी शिष्य गुरु का विनय कर सकता है। उनके अनुशासन का पालन कर सकता है।
(४) ज्ञान-क्रिया का समन्वय-जैन विचारधारा में शिक्षा की व्याख्या करते हुए ज्ञान के साथ क्रिया के समन्वय पर बल दिया गया है। सम्यक्ज्ञान और सम्यक्दर्शन हो जाने पर भी जब तक सम्यक्चारित्र की आराधना अनुपालना नहीं होगी, मुक्ति या मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकेगी। इसीलिए शास्त्रों में कथन किया गया-'णाणस्स फलं विरतिः' अर्थात् ज्ञान का फल त्याग है, चारित्र है। अन्यत्र भी ज्ञानियों के ज्ञान का सार बताया गया कि-ज्ञानियों के ज्ञान का सार यही है कि उनके द्वारा किसी भी जीव को कष्ट न हो। ऐसा व्यवहार हो उनका ।13 जैन सिद्धान्त की यह भी मान्यता है कि कोई द्रव्य या बाह्य रूप से चारित्र या संयम नहीं पाल सके, परन्तु जीव को मुक्ति तभी होगी जब वह भाव-चारित्र को ग्रहण करेगा।
इस प्रकार जैन परम्परा केवल ज्ञान को ही महत्व नहीं देती-'चारित्तं खलु सिक्खा' चारित्र ही सच्ची शिक्षा है, कहकर चारित्र के महत्त्व का उद्घोष कर रही है ।
वर्तमान शिक्षा में जैन विचारधारा के उक्त महत्वपूर्ण बिन्दुओं को स्थान दिया जायगा तो हमारे समक्ष उपस्थित चरित्र का संकट अवश्यमेव दूर हो सकेगा । सुशिक्षा प्राप्त कर सुयोग्य नागरिक अपने और राष्ट्र को निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर सकेंगे।
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची:
1. उत्तराध्ययन सूत्र अध्याय 26 गाथा 12 । 2. कोटिया महावीर-श्रीमद् जवाहराचार्य-शिक्षा, बीकानेर, श्री अ० भा० साधुमार्गी जैन संघ 1977 । 3. वही, पृष्ठ 2
4. दशवकालिक सूत्र । 5. तत्त्वार्थसूत्र-आचार्य उमास्वाति ।
6. ठाणांग सूत्र ठाणा 2 । 7. आचारांग सूत्र अध्ययन 1 उ० 5/51
8. तत्त्वार्थसूत्र । 9. उत्तराध्ययन सूत्र ।
10. तत्त्वार्थसूत्र । 11. उत्तराध्ययन सूत्र अध्याय 11, गाथा 14 । 12. वही। 13. सूत्रकृतांग सूत्र ।
२३६ | पंचम खण्ड : सांस्कृतिक सम्पदा
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