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साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
उतना ही संचय करना चाहिए जितना आवश्यक हो। यदि आवश्यकता से अधिक संचय किया है तो उसका सामाजिक विकास में सदुपयोग हो। ऐसे व्यक्ति जो सामाजिक कार्य करते हुए दिखामी देते हैं, वे व्यक्ति किसी को उपदेशित करें तो उनका प्रभाव ज्यादा पड़ेगा। .... मानव में आसक्तिजन्य भाच या अज्ञानता कूट-फूट कर भरी हुई है। इसी अज्ञानता के कारण वह दसरों को दुःख देता है। हर इच्छा की मूर्ति में आसक्तिजन्य भाव दर्शाता है और उसके पीछे लगा रहता है। वह यह नहीं सोचता कि मैं जो कुछ कर रहा हूँ वह सही है या गलत। इसका भावी पीढ़ी चं समाज पर क्या प्रभाव पड़ेगा। जब यह बात उसकी समझ में आ जायेगी तब वह अच्छे काम करेगा 1 उसमें अज्ञानता एवं मोह शिथिल होने लगेगा।
केवल, ज्ञान ही नहीं उसके साथ करुणा का भाव भी आना आवश्यक है। करुणा मानव को जीवन के उच्च स्तर पर आसीन करती है क्योंकि वैचारिक क्रान्ति के बाद ही प्राणी में करुणा का जाम होता है । करुणा को अहिंसा का आधार कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। महाराजा कुमारपाल ने भी अमारि की घोषणा करवायी थी जो अशोक से भी एक कदम आगे दिखायी देता है । हेमचन्द्र ने अपने दृयाश्रय काव्य में कहा है कि उन्होंने कसाइयों एवं शिकारियों द्वारा होने वाली हिंसा को रोका। इसी प्रकार के उल्लेख मारवाड़ के एक भाग में स्थित रतनपुर के शिव मन्दिर जोधपुर राज्य के किराड़ से प्राप्त हिंसा विरोध के आलेख आज भी इसकी साक्षी देते हैं । इसीलिए मनुष्य को प्राणियों के प्रति दया करनी चाहिए । कबीर ने भी इसी बात की पुष्टि करते हुए कहा है
दया दिल में राखिए, तू क्यों निर्दय होय ।
साईं के सब जीव हैं, कीड़ी कुंजर होय ॥ अहिंसा को जीवन में उतारने के लिए व्यक्ति को चरित्र की आवश्यकता है। चरित्रवान व्यक्ति की कथनी और करनी में बहुत समानता होती है। चरित्रवान् व्यक्ति के गुणों का उल्लेख करते हुए समणसुत्त में कहा गया है- “जो चरित्र युक्त (है), (वह) अल्प शिक्षित होने पर (भी) विद्वान (व्यनि) को मात कर देता है, किन्तु जो चरित्रहीन है, उसके लिए बहुत श्रुत-ज्ञान से (भी) क्या लाभ (है)?"1 ऐसे व्यक्ति ही समाज एवं राष्ट्र के प्रति वफादार हो सकते हैं। दूसरे नहीं। भगवान महावीर ने भी चरित्र की विशुद्धता पर विशेष बल दिया है। समगसुत्त में भी कहा है-"क्रिया-हीन ज्ञान निकम्मा (होता) है, तथा अज्ञान से (की हुई) क्रिया (भी) निकम्मी (होती है), (प्रसिद्ध है कि) देखता हुआ (भी) लंगड़ा (व्यक्ति) (आग से) भस्म हुआ और दौड़ता हुआ (भी) अन्धा व्यक्ति आग से भस्म हुआ। ..चरित्र के महत्व को बताते हुए उमास्वाति ने अपने “तत्वार्थ सूत्र' में भी लिखा है----
सम्यकदर्शन-ज्ञान-चारित्राणि मोक्षमार्गः। - चरित्र के अभाव के कारण हमारा देश अनेक व्याधियों, कठिनाइयों, अमैतिकता एवं भ्रष्टाचार की ओर बढ़ रहा है। अपने कर्त्तव्य को कोई समझता नहीं अपितु दूसरों के कर्तव्यों की ओर सृष्टिपात करते हैं। यदि व्यक्ति अपने कर्तव्य को समझने लग जाय तो वह एक दूसरे के प्रति निकट आयेगा तथा
1. सोगानी डा० कमलचन्द जी, समणसुत्तं चयनिका, गा० 81।
2. वही गाथा मं0 721 २२० । पचम खण्ड : सांस्कृतिक सम्पदा
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