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HTTHARIHAR
साध्वीरत्नपुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
आश्चर्यों का आश्चर्य । नागराज शान्त भाव से लाठी के छोर से लिपट गए। महिला जंगल का ओर चल पड़ी।
मार्ग में एक स्थान पर फिर से नागराज को जाने क्या सूझी कि लाठी पर से उतर कर फिर किसी घर में प्रविष्ट होने लगे। उस महिला ने फिर कहा-"नागराज ! आप ऐसा न करें । लोग आपको मार डालेंगे। आइये, मेरी लाठी पर बैठ जाइये । मैं आपको एकान्त जंगल में छोड़ आती हूँ।"
नागराज पुनः चुपचाप लाठी से आकर लिपट गए और उस महिला ने उन्हें ले जाकर जंगल में छोड़ दिया।
इस छोटे से उदाहरण में बहुत बड़ा मर्म निहित है और वह है-अहिंसा भाव का महत्व, एक अहिंसक व्यक्ति की अडिग आत्मश्रद्धा। उस महिला के अहिंसा भाव को, उसके प्रेम को, दया भावना से परिपूर्ण उसके कोमल हृदय को मूक पशु ने भी जाना-पहचाना–स्वीकार किया।
अहिंसा के प्रताप को, उसके महत्त्व को क्या यह दृष्टान्त स्पष्ट रूप से उजागर नहीं करता।
वर्तमान काल बड़ा कठिन काल है। धर्म का लोप होता दिखाई देता है। मनुष्य स्वार्थान्ध होकर अंधी दौड़ में पड़ा है । एक देश दूसरे देश को हड़प जाना चाहता है । युद्ध के बड़े भीषण, विनाशकारी शास्त्रों का निर्माण हो चुका है । भूल से भी यदि वे शस्त्र फूट पड़े तो पृथ्वी का अन्त हो सकता है । मानवता लुप्त हो सकती है।
ऐसी स्थिति में जैन दर्शन की अहिंसा ही एक मात्र वह आधार बन सकती है जो विश्व की रक्षा कर सके । समय रहते इस तथ्य का स्वीकार संसार की महाशक्तियों को कर लेना चाहिए। अन्त में
सव्वे पाणा पिआउआ । सुहसाया दुक्ख पडिकूला। अप्पियवहा पियजीविणो जीविउकामा, सव्वेसिं जीवियं पियं नाइवाएज्ज कंचणं ।
-आचारांग १/२/३ तथा
अत्थि सत्थं परेण परं, नत्थि असत्थं परेण परं।
-आचारांग १/३/४ सब प्राणियों को अपना जीवन प्यारा है, सुख सबको अच्छा लगता है और दुःख बुरा । वध सबको अप्रिय है और जीवन प्रिय, सब प्राणी जीना चाहते हैं, कुछ भी हो जीवन सबको प्रिय है।
अतः किसी भी प्राणी की हिंसा न करो। -शस्त्र (हिंसा) एक से एक बढ़कर हैं । परन्तु अशस्त्र (अहिंसा) एक से एक बढ़कर नहीं हैं। अर्थात् अहिंसा की साधना से बढ़कर श्रेष्ठ दूसरी कोई साधना नहीं है। १९८ | पंचम खण्ड : सांस्कृतिक सम्पदा
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