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साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
क्रोध की अनेक पर्याय उल्लिखित हैं । इन्हें दश संज्ञाओं में परिगणित किया जा सकता
है । यथा
(१) क्रोध (३) रोष
(५) अक्षमा
(७) कलह ( 8 ) भंडन
(२) कोप (४) दोष
(६) संज्वलन ( 5 ) चाण्डिक्य
(१०) विवाद
संवेग की उत्तेजनात्मक अवस्था क्रोध, क्रोध से उत्पन्न स्वभाव की चंचलता कोप, क्रोध का परिस्फुटित रूप रोष, स्वयं पर या दूसरे पर थोपना दोष, अपराध को क्षमान करना अक्षमा, बार-बार जलना और तिलमिला जाना संज्वलन, जोर-जोर से बोलकर अनुचित भाषण करना कलह, रौद्ररूप धारण करना चाण्डिक्य, मारने-पीटने पर उतारू हो जाना - भण्डन तथा आक्षेपात्मक भाषण करना विवाद कहलाता है | विचार करें, ये नाना अवस्थाएँ क्रोध के कारण उत्पन्न होती हैं। आवेग के अनुसार ये सभी अवस्थाएँ उत्पन्न होकर भयंकर रूप धारण करती है । "
क्रोध उत्पन्न होने के अनेक कारण होते हैं - असन्तोष, असफलता, अभाव, प्रतिकूलताएँ आदि । विपरीत एवं विषम परिस्थितियों से प्राणी के अन्दर ही अन्दर झल्लाहट पैदा होती है । विचार करें, क्षमा अन्दर से उत्पन्न होती है वह आत्मा का स्वभाव है । क्रोध बाहर से आता है और वह कर्म का स्वभाव है ।
क्रोध की पराकाष्ठा और उसका परिणाम युद्ध है । आज विश्व महायुद्ध के वातावरण में जी रहा है। युद्ध में विनाशकारी कौतुक हुआ करते हैं। भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू अपनी विदेश यात्रा पर थे और वे सर्वत्र शान्ति की बातें कर रहे थे। बीच में जब किसी मुस्लिम देश में उनका वायुयान रुका तो वहाँ के पत्रकारों ने उन्हें घेर लिया। एक ही प्रश्न था उन सबका कि शान्तिप्रिय देश के प्रधानमन्त्री युद्ध-शान्ति के क्या उपाय बतला रहे हैं ? नेहरू जी ने सबके प्रश्नों को बड़ी सावधानीपूर्वक सुना और उत्तर देते हुए कहा कि भाई, हमें परस्पर में युद्ध सम्बन्धी बातें करनाकराना बन्द कर देना चाहिए फिर युद्ध नहीं होंगे । वातावरण से युद्ध विषयक चर्चाओं का किसी प्रकार से समापन हो जाएगा तब फिर युद्ध होने की सम्भावना स्वतः ही गिर जाती है । उत्तर सरल था किन्तु था सारपूर्ण । जरा विचार करें कि क्रोध की उम्र ही क्या है ? क्रोध की आयु अत्यल्प होती है । यदि कोई पूरे रात-दिन क्रोध करना चाहे तो वह कर नहीं सकता । क्रोध का संवेग उत्कर्ष पर हो तो चतुराई इसमें है कि हमें उस क्षण संयम से काम लेना चाहिए । कोधी से कोई सम्बन्ध न रखें और उसे किसी प्रकार का रेसपोन्स न दें, उसके प्रति सजग न हों तो यह तय है कि उसका क्रोध स्वयं शान्त हो जायगा । afrat कषाय भयंकर होती है किन्तु होती है क्षण भर के लिए । विरोधी को पाकर वह तत्काल जागती है । इसीलिए लोक जीवन में क्रोध - काल में मौन रखने की बात कही गई है - कहावत भी चल पड़ी कि एक चुप सौ को हराए ।
जब क्रोध का संवेग आक्रमण करे तब हमें कोई ऐसा काम नहीं करना चाहिए जिनसे उसका पोषण होता है । उदाहरणार्थ - क्रोध-काल में भोजन करने की पूर्णतः वर्जना की गई है। क्रोध की अवस्था में भोजन करने से परिणाम नितान्त अशुभ तथा भयंकर होते हैं । एक बार क्रोध करने से
कषाय कौतुक और उससे मुक्ति साधन और विधान : डॉ० महेन्द्रसागर प्रचंडिया | १२३
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