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साध्वीरत्नपुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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आत्म तत्त्व
डा. एम. पी. पटैरिया भारतीय दर्शन का चिन्तन-क्षि तिज बहु आयामी है। 'जीव' और 'जगत्' के अस्तित्व की परिचर्चाओं के साथ-साथ उनका स्वरूप निर्धारण, दर्शन का प्रमुख प्रतिपाद्य रहा है। किन्तु, जगत् दावानल से विदग्ध जीवात्मा की दुःख-निवृत्ति कैसे हो ? इस दिशा में जब वह शोधलीन हुआ, तब उसे ऐसी अनुभूतियाँ हुईं कि जगत् के समस्त दुःखों से छुटकारा पाने का एक मात्र उपाय ‘आत्म-साक्षात्कार' हो सकता है। इस अनुभूतिपरक प्रेरणा ने, दर्शन को आत्मान्वेषण की ओर प्रवृत्त किया। फलतः जिनजिन महर्षियों आचार्यों ने आत्म-साक्षात्कार में सफलता पाई, उन्होंने, अपनी अनुभूतियों को एक व्यवस्थित स्वरूप दे दिया। ताकि, उनके साधना-अनुभवों का लाभ उठाकर लोग भी आत्मसाक्षात्कार कर सकें; जगत् के कष्टों से हमेशा-हमेशा के लिए छुटकारा पा सकें।
जो जन्मता है, वह मरता भी है। जन्म और मृत्यु के बीच उसे कई रूपों/स्थितियों/अवस्थाओं में से गुजरना पड़ता है । मृत्यु के बाद भी, उसे फिर जन्म लेना/मरना पड़ता है। जन्म-मृत्यु का यह सिलसिला, जीव और जगत् को इस कदर साथ-साथ बांधे रखता है कि कोई भी जीवात्मा, अपनी संसारावस्था से उन्नत/शुद्ध स्थिति के बारे में सोच तक नहीं पाता। आत्म-साक्षात्कार करने वाले ऋषियों/आचार्यों ने, इन सारी स्थितियों की विवेचना भी अपनी अनुभूतियों में सिलसिलेवार की; और अन्तिम निष्कर्ष के रूप में, यह बात जोर देकर कही, कि दुनियाँ के जंजाल से छूटने का एकमात्र साधन 'आत्म-साक्षात्कार' ही है। इसी कारण, भारतीय दर्शनों का जो स्वर उभरा है, उसमें 'आत्म-तत्त्व' को मौलिक आधार मानने को गूज, साफ-साफ सुनाई पड़ रही है।
अनेकों भारतीय ऋषियों/आचार्यों ने 'आत्म-साक्षात्कार' किया; किन्तु उनके ढंग और अनुभूतियाँ अपने-अपने तरह के थे। जिस ऋषि/आचार्य ने जिन-जिन तौर-तरीकों को आनाकर 'आत्म-साक्षात्कार' करने में सफलता पाई, उन तरीकों अनुभवों के अनुरूप उसने अपने शिष्यों प्रशिष्यों को भी प्रशिक्षित किया। फलस्वरूप, कालान्तर में, आत्म-साक्षात्कार के तमाम तरह के तौर-तरीके और भिन्न-भिन्न तरह के अनुभव, जब आम आदमी के सामने आये, तो उसे लगा-'एक ही आत्मतत्त्व के बारे में, अलग-अलग तरह की मान्यताएँ क्यों/कैसे आ सकती हैं ?
आचार्यों की मान्यता है—प्रत्येक द्रव्य तत्त्व. अनन्त धर्मों वाला है। जिन-जिन ऋषियों आचार्यों ने आत्म-साक्षात्कार किया, यदि उनके अनुभवों/विश्लेषणों में कहीं कुछ भिन्नता है, तो यह नहीं मानना चाहिए कि उनके द्वारा किया गया आत्म-साक्षात्कार, और उसकी विवेचना गलत/असत्य/