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साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
गुण-गुण- गारवेणं
सुँदरकुवरी पुप्फवइ - महासई । जाया भक्ति-भावं हि आगम- सुत्त-पह - अणुगामिणी ||८|| आगम-रहस्स - सव्व - दंसण - पाणी । णिम्मलपण्णा
ण केवल-णय - पाणी तक्कपवीण-वय- पडू
य बुद्धम ||५||
विज्जाइ सम्म सहा तेणं जिणवयणरसं
अपुव्वगुरुभक्ती-चरितणिट्ठा । णिसुणिऊणं अइ-संतुट्ठा ।। ६० ।। देसदेसंतरं गमणागमणं ।
संवेगमुक्क-सीलधरा सा ।। ६९ ।।
पंचास - वास- दिक्ख - समय - जाया । जा विगप्प - संकष्प - जालाए ||६२ ||
सुधम्म-पयाररत्ता इंदियं दण्डिऊणं पुप्फवई - समणीए सुधण्णा सि तुम बोहिता भव्वलोयं तव - सूसिय-तणू - चत्त-णीसेस - रागा । सज्झाणड्ढा गुरूणं स-समय-विहिणा सारणाई करिता ॥ ६३॥ सूरीसो चित्तवेगो समण - परिवुडो देसयंता जणाणं । धम्मं तित्येसरूत्तं विहरइ वसुई संजमुज्जोय - जुत्ता ||६४ || एसा समणी - समणी सव्वलोय - भव्व - जणाणं वसुहि । णियय - अवस्था - सरिसं सलाह- णिज्जं च होउ जणा || ६५ ।।
२६० | तृतीय खण्ड : कृतित्व दर्शन
इइ भइ गणिदे झाणतत्तं महद्धा
जण - सदसि मुणिद्दा पातुसाभत्ति भाजो |
घण - पुलकिय - मुहुर-गत्तमविर मुहाजं दिणकर - करयोग - आकरा किं अयं अमर सग्गो किं णु जइणाणु भावो किमुत जियइ- एसा किं धीमंतो पहावो । इति वितहि कुऊहा दिक्खमाणा
तुमं
जयइ गुरु-समाजेहि-भत्तु - अट्ठाण - भूमी ॥६७॥ सुधीरासमणी तुमं चंदणामहासइव्व सई । गहीरा - उयही तुमं जण - कल्लाण-कारणी ||६८ || परं पदं परं सुहं जिणागम - परमक्खरं तुमं अस्थि । इमं 'उदय' गुण - णिहाणं होमि ||६६ ||
तुमं
जाणिऊणं हं
बम्बुजाणं ॥६६॥
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